'गलता लोहा' कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है? चर्चा करें।
Open in App
Solution
इस कहानी का अंत लेखक ने बहुत सुंदर तरीके से किया है। जहाँ पर धनराम के मुख पर उसने हैरानी के भाव छोड़े हैं, वहीं उसने समाज में मोहन के भविष्य की ओर संकेत भी किया है। इस कहानी का अन्य कोई अंत मुझे दिखाई नहीं पड़ता है। यदि पीछे की ओर देखते हैं, तो मोहन के पास अब वह विकल्प नहीं बचे हैं, जो उसे सुनहरे भविष्य की ओर ले जाएँ। मोहन लोहे पर हथौड़ा मारकर उसे जो आकार देता है, वह बताता है कि उसके कदम भविष्य की नई दिशा की ओर चल पड़े हैं। अब वह जाति भेदभाव से अलग हो चुका है और काम को अपना जीवन मानता है। उसकी आँखों में सृजन की चमक बताती है कि उसके अंदर वह आत्मविश्वास और कुछ कर दिखाने की चाह समाप्त नहीं हुई है। उसने अपने लिए नया रास्ता चुन लिया है। यह रास्ता हर बंधनों से अलग है। यह रास्ता उसे कर्म की ओर ले जाता है, ऐसा कर्म जिसने समाज को एक कर दिया है।
यह अंत हो सकता था कि हताश मोहन धनराम के कार्य को देखकर आत्मग्लानि के भाव से भर जाता है और उदास अपने घर की ओर चल पड़ता है। मगर यह अंत कहानी को सुखांत नहीं दुखांत बना देता। हम समाज में ऐसा अंत देकर उसे पथभ्रष्ट नहीं कर सकते हैं। अतः लेखक का दिया अंत ही अच्छा है।