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Question

हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?

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Solution

प्राचीन भारत में सदैव से ही आत्मबल पर ध्यान रखने के लिए कहा गया है। हमारा मानना है कि जिस मनुष्य की आत्मा प्रबल है, वह इस संसार के हर कष्ट से परे है। वे संतोषी है और जीवन में हर प्रकार की सुख-सविधाएँ तथा कष्ट उसके लिए निराधार है। आत्मबल के माध्यम से वह इंद्रियों से लेकर मन तक को अपने वश में कर लेता है। इस तरह वह महात्मा हो जाता है। यहाँ पर अवधूत ही ऐसे व्यक्ति के लिए कहा गया है, जिसने विषय-वासनाओं पर विजय प्राप्त कर ली है। आज के समय में ऐसे लोग देखने को नहीं मिलते हैं। आज हर किसी के अंदर देह-बल का वर्चस्व छाया हुआ है। सब शारीरिक बल को लोग अधिक महत्व देते हैं और इसका प्रयोग भी कर रहे हैं। यह हमारी सभ्यता का पतन का मार्ग है। क्योंकि कोई सभ्यता देह-बल से फली-फूली नहीं है। उसके फलने-फूलने का कारण आत्मबल है। देह-बल में शक्ति का प्रदर्शन होता है। अपने विरोधी को परास्त कर उसे गुलाम बनाना होता है। लेकिन आत्मबल में हम अपने शत्रु यानी कि मोह, काम, क्रोध, वासना, अहंकार इत्यादि पर विजय प्राप्त करते हैं और शांति का प्रसार करते हैं। यह समाज को देता ही है लेता नहीं है। पर आज ऐसी स्थिति दिखाई नहीं देती है।

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