(क) कवि अपनी रचनाओं में जिस सृष्टि की रचना करता है, वह कल्पनालोक की देन नहीं है। उसका आधार है यथार्थ। उस यथार्थ को आधार बनाकर वह रचनाओं का निर्माण करता है।
(ख) लेखक के अनुसार सृष्टि की रचना करने वाला कवि गंभीर यथार्थवादी होता है। अर्थात वह यथार्थ को कल्पना से नहीं जोड़ता है। वह उसे गंभीरता से लेता है और अपनी रचनाओं में पूरी गंभीरता से उस यथार्थ को दर्शाता है। इस प्रकार के साहित्यकार की विशेषता होती है कि वह अपना कर्तव्य पूरी गंभीरता से निभाता है। उसके पाँव यथार्थ पर पूर्णरूप से टिके होते हैं। अर्थात वह सच्चाई से पूरी तरह से जुड़ा होता है। वह जानता है कि वर्तमान में क्या चल रहा है। वह जानता है कि वर्तमान का यह सत्य कैसे भविष्य के क्षितिज पर दिखाई देखा।
(ग) लेखक के अनुसार ऐसे साहित्यकार जिनका साहित्य लोगों को दासता से मुक्ति दिलाने के स्थान पर उन्हें गुलाम बना देता है, उन पर धिक्कार है। ऐसे लोगों को शर्म से डूब मरना चाहिए। उनकी रचनाओं को साहित्य नहीं कहा जा सकता है। साहित्यकार का कर्तव्य है कि वह लोगों को दासता से मुक्ति दिलाए और विकास का मार्ग प्रशस्त करे।