(क) प्रस्तुत पंक्ति में हरगोबिन बड़ी हवेली की तुलना उसके बीते समय से करता है। जब इस हवेली के ठाट-बाट ही कुछ थे। एक समय था जब बड़ी हवेली का गाँव में दबदबा हुआ करता था। उसकी पहचान थी। बड़े भैया के मरने के बाद सब ठाट-बाट चला गया। बाकी तीन भाइयों ने हवेली का बँटवारा कर दिया और अब यहाँ कोई नहीं रहता है। अब यह नाममात्र की हवेली रह गई है। अब इसकी पहले वाली पहचान नहीं रही है।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति में हरगोबिन उस समय का वर्णन करता है, जब हवेली की रानी बड़ी बहुरिया की साड़ी तक उनके तीन देवरों ने तीन टुकड़े करके बाँट लिए थे। बड़ी बहुरिया के पहने हुए गहने तक नोचकर आपस में बाँट लिए थे। हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया के साथ वह अन्याय होते देखा था। उस अन्याय को दर्शाने के लिए हरगोबिन ने उसकी तुलना द्रौपदी के चीरहरण लीला से की है। बड़ी बहुरिया के साथ जो किया गया था, वह द्रौपदी के चीरहरण से कम भयानक नहीं था।
(ग) यह पंक्ति बड़ी बहुरिया तब कहती है, जब वह अपनी माँ को हरगोबिन के माध्यम से अपनी व्यथा सुनाने के लिए भेजती है। वह अपनी माली स्थिति से परेशान है। घर में खाने के लिए कुछ नहीं है। जो भी खाती है, उधार ही खाती है। बथुआ ऐसी हरी सब्जी होता है, जो खेतों तथा खाली स्थानों में यूहीं उग जाया करती है। बड़ी बहुरिया उसे खाकर ही जीवन व्यतीत करती है। अपनी माँ को अपने बुरे हाल दर्शाने के लिए वह यह कहती है कि बथुआ साग खाकर कब तक जीऊँ? अर्थात अब स्थिति यह है कि मेरे पास खाने के लिए यही बथुआ का साग बचा है।
(घ) यह पंक्ति हरगोबिन अपने मन में सोचता है। उसने बड़ी बहुरिया के वे दिन भी देखे थे, जब वह हाथों में मेंहदी लगाए हुए कई लोगों का घर चलाया करती थी। उस बड़ी बहुरिया के पति के मरते ही ऐसी गति हुई कि सब देखते रह गए। देवरों ने सब हड़प लिया। अब उस बड़ी बहुरिया की दशा बहुत ही खराब है। उनके दर्द भरे संवाद को सुनकर हरगोबिन कष्ट में था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि बड़ी बहुरिया की माँ को ऐसा संवाद कैसे सुनाएगा। उनकी माँ को यह सुनकर दुख नहीं होगा कि जहाँ बेटी को रानी बनाकर भेजा, वहाँ उसे एक समय का भोजन भी नहीं मिल पा रहा है। यह सोचकर हरगोबिन दुविधा में पड़ गया।