'जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा' पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
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Solution
नागमति का पति परदेश गया हुआ है। पति की अनुपस्थिति उसे भयंकर लगती है। वह पति के वियोग में जल रही है। एक स्थान पर पति के वियोग से उत्पन्न विरह को उसने बाज़ रूप में चित्रित किया है। जिस तरह बाज़ अपने शिकार को नोच-नोचकर खा जाता है, वैसे ही विरह रूपी बाज़ नागमती को जीवित नोच-नोचकर खा रहा है। उसे लगता है, जैसे विरह रूपी बाज़ उसे अपना शिकार बनाने के लिए नज़र गड़ाए बैठा है। जो उचित अवसर मिलते ही उसे नोचने लगता है। जब तक यह बाज़ उसे पूर्ण रूप से खा नहीं लेगा, तब तक वह उसका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। भाव यह है कि नागमति के लिए पति से अलग होने की स्थिति बहुत ही कष्टप्रद है। विरहग्नि इतनी उग्र होती जा रही है कि इसका विपरीत असर प्रत्यक्ष रूप में न दिखाई दे परन्तु अप्रत्यक्ष रूप में वह उसे लील रहा है। वह चाहकर भी स्वयं को सांत्वना नहीं दे पा रही है। बस इस अग्नि में अकेले जल रही है।