(क) राजा किसी को भी दान क्यों नहीं देना चाहता था?
(ख) राजदरबार के लोग मन ही मन राजा को बुरा कहते थे लेकिन वे राजा का विरोध क्यों नहीं कर पाते थे?
(ग) राजसभा में सज्जन और विद्वान लोग क्यों नहीं जाते थे?
(घ) संन्यासी ने सीधे-सीधे शब्दों में भिक्षा क्यों नहीं माँग ली?
(ङ) राजा को संन्यासी के आगे गिड़गिड़ाने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
(क) राजा बहुत कंजूस था। उसका मानना था कि यदि वह दान देगा, तो उसका राजकोष खाली हो जाएगा। अत: वह दान नहीं देना चाहता था।
(ख) राजदरबार के लोग मन ही मन राजा को बुरा मानते थे। परन्तु वे जानते थे कि यदि वे राजा का विरोध करते हैं, तो वह उनको दण्ड देगा। दण्ड से बचने के लिए वे राजा का विरोध नहीं करते थे।
(ग) राजसभा में सज्जन और विद्वान का आदर सत्कार नहीं होता था। इसलिए वे राजसभा में नहीं जाते थे।
(घ) संन्यासी बहुत चतुर था। वह जानता था यदि वह सीधे-सीधे शब्दों में भिक्षा माँगता, तो राजा इतनी बड़ी रकम कभी नहीं देता। उसने इसलिए ऐसे तरीके से भिक्षा माँगी कि राजा मूर्ख बन गया और उसने बड़ी रकम को मामूली समझकर भिक्षा देना स्वीकार कर लिया।
(ङ) राजा ने संन्यासी को भिक्षा देने का वचन दे दिया था। लेकिन भंडारी के अनुसार भिक्षा के रूप में राजकोष से दस लाख रुपये की रकम निकल जाने वाली थी। इससे राजा दिवालिया होने वाला था। राजा को अपना राजकोष बचाने के लिए संन्यासी के आगे गिड़गिड़ाना पड़ा।