कबीर बस अपने ईश्वर की अराधना करते हैं। उन्हें किसी का कहना समझ नहीं आता है। उन्हें बस अपने ईश्वर से और उसकी भक्ति से लेना है। उनकी भक्ति का ही प्रमाण है कि ईश्वर के सच्चे स्वरूप के उन्हें दर्शन हो गए हैं। ईश्वर की भक्ति में उन्हें दीन-दुनिया की याद नहीं रहती है। लोग क्या कहते हैं क्या नहीं इसकी वे परवाह नहीं करते हैं। अब उन्हें किसी बात का भय नहीं सताता है। यही कारण है कि उन्होंने स्वयं को दीवाना कहा है।