खुद के हाथ से पथी ईंटों का रंग बदला हुआ देखकर मानो के मन में इन्हीं पक्की ईंटों से घर बनाने का ख्याल आया। यह सोचकर उसे नींद नहीं आ रही थी। अब वह भी चाहती थी कि ऐसी ही पक्की ईंटों से उसका अपना छोटा-सा घर हो। सुबह जब मानो ने उसे उठाया तो उससे चुप न रहा गया।
मानोः क्या हम इन पक्की ईंटों से अपने लिए एक घर बना सकते हैं?
सुकियाः (हैरानपूर्वक) पगली दो-चार पैसे से पक्की ईंटों का घर नहीं बनता है। इसके लिए हमें बहुत-सा पैसा चाहिए।
मानोः (भोलेपन से) दूसरों के लिए जब हम ईंटें बनाते हैं, तो अपने घर के लिए भी ईंटें बना सकते हैं।
सुकियाः (समझाते हुए) हम भट्ठे के मालिक के लिए काम करते हैं। ये सब ईंटें उसकी हैं।
मानोः (दुखी होकर) हम बहुत मेहनत करेंगे और पैसे जोड़कर अपने लिए घर बनाएँगें। इसके लिए हम रात-दिन मेहनत करेंगे।
सुकियाः अच्छा ठीक है। ऐसा ही करेंगे।
दोनों को जीवन का उद्देश्य मिल गया था।