कवि अपनी पुत्री सरोज से बहुत प्रेम करता है। वह चाहता है कि मृत्यु के बाद का उसका समय कष्टपूर्ण न बीते। अत: वह उसकी सद्गति के लिए अपने सपूर्ण जीवन में कमाएँ गए सद्कर्मों को पुत्री के तर्पण करते समय अर्पित कर देते हैं। हिन्दू धर्म में श्राद्ध के समय तर्पण देने का रिवाज है। इस समय जल तथा अन्य सामग्री के साथ मरे व्यक्ति का तर्पण किया जाता है। कवि इसी समय अपनी पुत्री के लिए अपने सद्कर्मों रूपी भेंट अर्पित करता है। इस प्रकार एक पिता अपनी पुत्री को श्रद्धांजलि देता है।