कवि के अनुसार बाहर जो अँधेरा व्याप्त है, वह हटने का नाम नहीं ले रहा है। उसके कारण सुबह हो नहीं पा रही है। सुबह के आने से यह अँधकार हट जाएगा। लेकिन यह इतन गहरा गया है कि कुछ नहीं हो पा रहा है। इसी कारण कवि की दृष्टि में बाहर का अँधेरा भीतर दुखःस्वप्नों से अधिक भयावह है।