निम्नलिखित स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देख गया है।–
• प्रतिदिन नूतन वेश बनाकर, रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।
प्रकृति हर क्षण यहाँ वेश बदल रही है। ऐसा लगता है कि बादलों की पंक्तियाँ सूरज के सामने नृत्य कर रही है। भाव यह है कि प्रकृति पल-पल बदल रही है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति अपना वेश बदल रही हो। सूरज के आगे बादल की पंक्तियाँ खड़ी हैं। ऐसा लगता है मानो वह सूर्य को नृत्य दिखा रही हो।
• रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।
भाव यह है कि समुद्रतट से सूर्योदय के समय सोने के समान चमकता समुद्र देखने का अपना आनंद है। ऐसा लगता है मानो समुद्र ने एक सोने की सड़क लक्ष्मी देवी के लिए बना डाली हो।
• निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।
भाव यह है कि समुद्र की आवाज़ ऐसी लग रही है मानो वह बिना डर के, मजबूती तथा गंभीरता के भाव लिए गरजना कर रहा हो।
• उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है।
भाव यह है कि चंद्रमा की बदलते आकार या कलाओं को उसका हँसना बताया गया है।