हम इस विचार से सहमत हैं कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। इसका स्पष्ट उदाहरण तब दृष्टिगोचर होता है, जब आपको बच्चों के लिए स्कूल से मँगाई कोई सामग्री लेनी होती है। दुकानदार आपकी मज़बूरी को भाँप जाता है और उस वस्तु के लिए आपसे मुँह माँगी कीमत वसुलता है। तब बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण बन जाती है और 20 रुपए की वस्तु हमें 200 रुपए में खरीदने के लिए विवश होना पड़ता है।