हर मनुष्य की एक मर्यादा होती है। यह मर्यादा समाज में व्याप्त होती है। कोई मनुष्य जब इसके विपरीत कार्य करने लगता है, तो माना जाता है कि उसने लोक-लाज खो दी है। मीरा ऐसी भगत थीं, जिन्होंने इस लोक-लाज का ध्यान नहीं दिया। वह कृष्ण से प्रेम करती थी। उनके लिए कृष्ण से बढ़कर कोई नहीं था। समाज तथा उसकी मर्यादा उनकी भक्ति और प्रेम के मार्ग में नहीं आ सकी। उन्होंने वे सब किया जो वह करना चाहती थी। लोगों ने उनकी भक्ति को समझा मगर तब तक देर हो चुकी थी। मीरा की भक्ति शुद्ध तथा पवित्र थी। अतः लोगों द्वारा उसे स्वीकृत करना पड़ा। आगे चलकर उसी समाज ने मीरा का मंदिर बनाकर उनकी पूजा की।