महान सम्राट अशोक ने घोषणा की कि वह प्रजा के कार्य और हित के लिए 'हर स्थान पर और हर समय' हमेशा उपलब्ध हैं। हमारे समय के शासक/लोक-सेवक इस कसौटी पर कितना खरा उतरते हैं? तर्क सहित लिखिए।
हमारे समय के शासक या लोकनेता पहले की तुलना में बिल्कुल नाकारा साबित हुए हैं। पहले के शासक प्रजा के हितों के लिए स्वयं के हित को नहीं मानते थे, उनके लिए जनता सर्वोपरि थी परन्तु आज का नेता इसके बिल्कुल विपरीत है। सत्ता में आना उसके लिए जैसे अपना स्वार्थ हित है। वो कभी जनता की समस्याओं के लिए उपलब्ध नहीं होते। अपितु, उन्हें किसी उद्घाटन समारोह या चुनाव प्रचार के समय वोट माँगते देखा जा सकता है। वो जनता से तारीफें तो बटोरना चाहते हैं परन्तु उनकी समस्याओं को सुलझाने व सुनने के लिए उनके पास समय नहीं है। समाज में व्याप्त दो-चार समस्योओं का हल निकालकर वह अपने कर्तव्यों को पूरा मान लेते हैं और जो महत्वपूर्ण जटिल समस्याएँ होती हैं, उसे ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं। उनको चुनावी घोषणा-पत्र में तो गरीबी उन्मूलन, महिलाओं को आरक्षण, शिक्षा के बेहतर सुविधाए, बेरोजगारी उन्मूलन आदि समस्याओं को दर्शाया जाता है। परन्तु सरकार बनने पर यह सारी समस्याओं पर ध्यान न देना उनका स्वभाव बन गया है। सत्ता पाते ही देश को दीमक की तरह अंदर ही अंदर चाट डालते हैं और जनता के लिए केवल टूटी अर्थव्यवस्था छोड़ जाते हैं। आज के नेता जनता के लिए आदर्श के स्थान पर एक घृणा का पात्र बनकर रह गया है। वो समाज में एक आदर्श के रूप में स्वयं को स्थापित नहीं कर पा रहें। इसका परिणाम है कि लोग राजनीति व राजनेताओं से बचकर रहना चाहते हैं।