संवेदनशीलता मनुष्य का स्वभाविक गुण है। इसी के प्रभाव के कारण मनुष्य में दूसरों के प्रति करुणा और प्रेम का भाव उत्पन्न होता है। आज के समय में मनुष्य ने अपनी संवेदनशीलता के प्रति आँखें बंद कर ली हैं। वह भावना उसके मन में रहती है अवश्य परन्तु मूक अवस्था में। यदि कभी वह उसके मन से बाहर आ भी जाए, तो व्यवहार में उसे ला नहीं पाता है। इसलिए कवि ने कहा है कि मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूँगेपन की प्रतिच्छाया के रूप में विद्यमान है।