मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
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मोहन को उसके पिता ने अपने जाति भाई के साथ पढ़ने के लिए लखनऊ भेजा था। पिता-पुत्र के बहुत से स्वप्न थे। उन्हें लगता था कि वहाँ जाकर मोहन अच्छी पढ़ाई करेगा और अफसर बनेगा। मगर स्थिति इसके विपरीत निकली। यह अध्याय मोहन के जीवन की दिशा ही बदल गया। अपने गाँव का होनहार विद्यार्थी माना जाने वाला मोहन वहाँ जाकर गली-मोहल्ले का नौकर बन गया। पढ़ाई के स्थान पर उसे घर के कामों में लगा दिया गया। एक साधारण से विद्यालय में भर्ती कराया गया मगर कोई उसकी पढ़ाई के हक में नहीं था। वहाँ उसकी पढ़ाई बाधित होने लगी और अंतत एक होनहार विद्यार्थी लोगों के स्वार्थ की भेंट चढ़ गया। उसे विवश होकर लोहे के कारखाने में नौकरी करनी पड़ी। यह एक ऐसा नया अध्याय था, जिसने मोहन की जिंदगी बदलकर रख दी।