मुझे असल में साँप ने नहीं काटा था। फिर मैंने अपनी कहानी का नाम जब मुझको साँप ने काटा क्यों रखा है? तुम इससे भी अच्छा कोई नाम सोचकर बताओ।
यह पूरी कहानी साँप के काटने पर ही घूमती रहती है। दादाजी के मन में साँप का भय विद्यमान था। अतः जब लेखक को बर्र काट लेता है, तो उन्हें लगता है कि इसे साँप ने काटा है। सारा घर इस बात से परेशान हो जाता है और आन-फान में वे झाड़-फूंक करने वाले के पास जा पहुँचते हैं। इस कहानी का और भी शीर्षक हो सकता है। अन्धविश्वास, नाना का डर, गाँव का डाक्टर आदि।