निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए-
(क) सास के अनुमोदन से ................. फिर परदेस चला जाएगा।
(ख) दरिद्र कुटुंबी इस तरह ............... वही दशा हिंदुस्तान की है।
(ग) वास्तविक धर्म तो .................... शोधे और बदले जा सकते हैं।
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Solution
(क) लेखक भारवासियों के आलस्य प्रवृत्ति पर उदाहरण के माध्यम से कटाक्ष करते हैं। वह बताते हैं कि एक बहू अपनी सास से पति से मिलने की आज्ञा लेकर पति के पास गई। वहाँ उसका मिलन नहीं हो पाया। कारण वह लज्जा के कारण कुछ बोल ही नहीं पायी। सारी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल थीं। मगर लज्जा उसके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गई। उसे इस कारण पति का मुख देखना भी नसीब नहीं हुआ। अब इसे उसका दुर्भाग्य ही कहें कि अगले दिन उसका पति वापिस जाने वाला था। अतः उसने आया अवसर गँवा दिया। इसके माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं कि भारवासियों को सभी प्रकार के अवसर मिले हुए हैं। भारतवासियों में आलस्य इस प्रकार छाया हुआ है कि वह इस अवसर का सही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद यह अवसर चला गया, तो हमारे पास दुख और पछतावे के अतिरिक्त कुछ नहीं बचेगा।
(ख) इसका आशय है कि एक गरीब परिवार समाज में अपनी इज्जत बचाने में असमर्थ हो जाता है। लेखक एक उदाहरण के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि गरीब तथा कुलीन वधू अपने फटे हुए वस्त्रों में अपने अंगों को छिपाकर अपनी इज्जत बचाने का हर संभव प्रयास करती है। भाव यह है कि उसके पास साधन बहुत ही सीमित हैं और वह उसमें ही कोशिश करती है। ऐसे ही भारतावासियों के हाल है। चारों ओर गरीबी विद्यमान है। सभी गरीबी से त्रस्त हैं। इसके कारण लोग अपनी इज्जत बचा पाने में असमर्थ हो रहे हैं। यह गद्यांश भारत की गरीबी का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।
(ग) यह गद्यांश उस स्वरूप को दर्शाता है, जो भारत में विद्यमान धर्मों का है। धर्म मनुष्य को भगवान के चरण कमलों की भक्ति करने के लिए कहता है। हमें इसे समझना होगा। जो अन्य बातें धर्म के साथ जोड़ी गई हैं, वे समाज-धर्म कहलाती हैं। समय और देश के अनुसार इनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। धर्म का मूल स्वरूप हमेशा एक सा रहता है। बस हमें उसके व्यावहारिक पक्ष को बदलने का प्रयास करना चाहिए।