(क) प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि देवी सरस्वती की महत्ता इस संसार में अद्वितीय है। प्राचीनकाल से लेकर आज तक लोग इनकी महिमा का बखान करने का प्रयास करते हैं। परन्तु न तब संभव था और न आज संभव है। इसका कारण यह है कि इनके स्वभाव में नित्य नवीनता विद्यमान रहती है। भाव यह है कि लोग उनसे चमत्कृत हो जाते हैं और उनकी बुद्धि चकरा जाती है। वह वर्णनानीत है इसलिए इनका बखान नहीं किया जा सकता है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में पंचवटी के सौंदर्य तथा पवित्रता का वर्णन देखने को मिलता है। कवि के अनुसार पंचवटी के दर्शन मात्र से ही घोर पापों के बंधनों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। इसके अंदर ज्ञान के भंडार भरे पड़े हैं, यहाँ जाकर इसका आभास हो जाता है। पंचवटी पापों को मिटाने तथा पुण्यों को बढ़ाने में सक्षम है।