निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए −
फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
इस कथन का आशय यह है कि फूल के ऊपर अगर थोड़ी सी धूल आ जाती है तो ऐसा लगता है मानों फूल सज गया है। उसी तरह जब बच्चे अथवा शिशु के मुख पर धूल लगती है तो एक सहज सौंदर्य लाती है। ऐसा सौंदर्य जो कृत्रिम सौंदर्य सामग्री को बेकार कर देता है। अत: धूल कोई व्यर्थ की वस्तु नहीं है।