निम्नलिखित पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) जाति-पाँति ...................... तुम्हारै गैयाँ।
(ख) सुनि री ............... नवावति।
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Solution
(क) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति सूरदास द्वारा लिखित ग्रंथ सूरसागर से ली गई हैं। इस पंक्ति में कृष्ण द्वारा बारी न दिए जाने पर ग्वाले कृष्ण को नाना प्रकार से समझाते हुए अपनी बारी देने के लिए विवश करते हैं।
व्याख्या- 'कृष्ण' गोपियों से हारने पर नाराज़ होकर बैठ जाते हैं। उनके मित्र उन्हें उदाहरण देकर समझाते हैं। वे कहते हैं कि तुम जाति-पाति में हमसे बड़े नहीं हो, तुम हमारा पालन-पोषण भी नहीं करते हो। अर्थात तुम हमारे समान ही हो। इसके अतिरिक्त यदि तुम्हारे पास हमसे अधिक गाएँ हैं और तुम इस अधिकार से हम पर अपनी चला रहे हो, तो यह उचित नहीं कहा जाएगा। अर्थात खेल में सभी समान होते हैं। जाति, धन आदि के कारण किसी को खेल में विशेष अधिकार नहीं मिलता है। खेलभावना को इन सब बातों से अलग रखकर खेलना चाहिए।
(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति सूरदास द्वारा लिखित ग्रंथ सूरसागर से ली गई हैं। इस पंक्ति में गोपियों की जलन का पता चलता है। वह कृष्ण द्वारा बजाई जाने वाली बाँसुरी से सौत की सी डाह रखती हैं।
व्याख्या- एक गोपी अन्य गोपी से कहती है कि हे सखी! सुन यह बाँसुरी कृष्ण को विभिन्न प्रकार से परेशान करती है। कृष्ण को एक पैर पर खड़ा करके अपना अधिकार व्यक्त करती है। कृष्ण तो बहुत ही कोमल हैं। वह उन्हें इस प्रकार अपनी आज्ञा का पालन करवाती है कि कृष्ण की कमर भी टेढ़ी हो जाती है। यह बाँसुरी ऐसे कृष्ण को अपना कृतज्ञ बना देती है, जो स्वयं चतुर हैं। इसने गोर्वधन पर्वत उठाने वाले कृष्ण तक को अपने सम्मुख झुक जाने पर विवश कर दिया है। भाव यह है कि गोपियाँ कृष्ण की बाँसुरी से जलती हैं। अतः बाँसुरी बजाते वक्त कृष्ण की प्रत्येक शारीरिक मुद्रा पर गोपियाँ कटाक्ष करती हैं। बाँसुरी बचाते समय कृष्ण एक पैर पर खड़े होते हैं। जब बाँसुरी बजाते हैं, तो थोड़े टेढ़े खड़े होते हैं, जिससे उनकी कमर भी टेढ़ी हो जाती है। उसे बजाते समय वे आगे की ओर थोड़े से झुक जाते हैं। ये सारी मुद्राओं को देखकर गोपियों को ऐसा लगता है कि कृष्ण हमारी कुछ नहीं सुनते हैं। जब बाँसुरी बजाने की बारी आती है, तो कृष्ण इसके कारण हमें भूल जाते हैं।