पाठ में 'साहित्य के स्वरूप' पर आए वाक्य इस प्रकार हैं-
(क) साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न उठती।
(ख) साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं, वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है।
(ग) साहित्य का पाँचजन्य समरभूमि में उदासीनता का राग नहीं सुना।
(घ) साहित्य मानव संबंधों से परे नहीं है।