'प्रकृति मनुष्य की सहचरी है' इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
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Solution
यह बात सत्य है कि 'प्रकृति मनुष्य की सहचरी है'। जबसे मनुष्य का अस्तित्व इस पृथ्वी पर उत्पन्न हुआ है प्रकृति ने सहचरी की भांति उसका साथ निभाया है। उसने मनुष्य की हर सुख-सुविधा का ख्याल रखा है और उसके अस्तित्व को पृथ्वी पर पनपने के लिए सभी साधन दिए हैं। प्रकृति के सानिध्य में रहकर ही मनुष्य सभ्य बना है तथा ज्ञान प्राप्त किया है। आज वह चाँद तक जा पहुँचा है। अत्याधुनिक साधन उसके पास उपलब्ध हैं। उसके पास जो छोटी से लेकर बड़ी वस्तु है, वे प्रकृति की देन हैं। मनुष्य का अपना कुछ भी नहीं है। उसने जो पाया है, वह इसी प्रकृति रूपी सहचरी से पाया है। आरंभ में पूरी पृथ्वी पर प्रकृति का साम्राज्य था। परन्तु जबसे मनुष्य ने पृथ्वी पर अपने पैर पसारने आरंभ किए, उसने इसके साम्राज्य पर कब्ज़ा ही कर लिया है। आज चारों तरफ उसने अपने आसपास सीमेंट के ऐसे जंगल खड़े कर दिए हैं कि जिसके कारण उसकी सहचरी सिमटकर रह गई है। उसने प्रकृति से सदैव लिया ही है। उसने लगातार सदियों से उसका दोहन ही किया है। उसने अपनी सहचरी के धैर्य और प्रेम को धोखा ही दिया है। आज प्रकृति ने भी अपने सहचरी रूप को छोड़कर विकराल रूप धारण कर लिया है। मनुष्य ने उसकी सीमाओं का इतना अतिक्रमण कर लिया है कि वह स्वयं अपने असितत्व को बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास कर रही है।