(क) आह! वेदना मिली विदाई!
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,
मधुकिरयों की भीख लुटाई।
(ख) लगी सतृष्णा दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कबकी।
मेरी आशा आह! बावली,
तूने खो दी सकल कमाई।
इसी तरह तीसरी पंक्ति में देखिए-
(ग) लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व!न सँभलेगी यह मुझसे
इससे मन की लाज गँवाई।