(1) देवदत्त की काव्यगत विशेषताओं में उनकी भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी भाषा बेहद मंजी हुई, कोमलता व माधुर्य गुण से ओत-प्रोत है। अपने इन गुणों के कारण ही वे ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि कहे जाते हैं।
(2) उनके काव्यों की भाषा में अनुप्रास अलंकार का विशेष स्थान है। जिसके कारण उनके सवैये व कवित्त में अनुपम छटा बिखर जाती है। उपमा व रुपक अलंकार का भी बड़ा सुंदर प्रयोग देखने को मिलता है।
(3) देवदत्त ने प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया है। वे प्रकृति-चित्रण में बहुत ही परंपरागत कवि हैं। वे प्रकृति चित्रण में नई उपमाओं के माध्यम से उसमें रोचकता व सजीवता का रुप भर देते हैं। जिससे उसमें नवीनता का स्वरुप प्राप्त होता है उदाहरण के लिए उन्होंने अपने दूसरे कवित्त में सारी परंपराओ को तोड़कर वसंत को नायक के रुप में न दर्शा कर शिशु के रुप में चित्रित किया है।