The correct option is C
3 only
केवल 3
Explanation:
A wide range of texts were produced in and around Sufi khanqahs. These included treatises or manuals dealing with sufi thought and practices —The Kashf-ul-Mahjub of Ali bin Usman Hujwiri (died c. 1071) is an example of this genre. It enables historians to see how traditions outside the subcontinent influenced Sufi thought in India.
Pair 1 is incorrectly matched: Maktubat (literally, “written” collections of letters); letters written by Sufi masters, addressed to their disciples and associates — While these tell us about the shaikh’s experience of religious truth that he wanted to share with others, they also reflect the life conditions of the recipients and are responses to their aspirations and difficulties, both spiritual and mundane. The letters, known as Maktubat-i Imam Rabbani, of the noted seventeenth-century Naqshbandi Shaikh Ahmad Sirhindi (d.1624), whose ideology is often contrasted with the liberal and non-sectarian views of Akbar, are amongst those most frequently discussed by scholars.
Pair 2 is incorrectly matched: Malfuzat (literally, “uttered”; conversations of Sufi saints)
An early text on malfuzat is the Fawa’id-al-Fu’ad, a collection of conversations of Shaikh Nizamuddin Auliya, compiled by Amir Hasan Sijzi Dehlavi, a noted Persian poet. The Malfuzats were compiled by different sufi silsilas with the permission of the shaikhs; these had obvious didactic purposes. Several examples have been found from different parts of the subcontinent, including the Deccan. They were compiled over several centuries.
Pair 3 is correctly matched: Tazkiras (literally, “to mention and memorialize”; biographical accounts of saints) – The fourteenth-century Siyar-ul-Auliya of Mir Khwurd Kirmani was the first sufi tazkira written in India. It dealt principally with the Chishti saints. The most famous tazkira is the Akhbar-ul-Akhyar of Abdul Haqq Muhaddis Dehlavi (d. 1642). The authors of the tazkiras often sought to establish the precedence of their own orders and glorify their spiritual genealogies. Many details are often implausible, full of elements of the fantastic. Still, they are of great value to historians and help them to understand more fully the nature of the tradition.
व्याख्या:
सूफी खानकाह में और उसके आसपास कई तरह के ग्रंथों की रचना हुई। इनमें सूफी विचारों और प्रथाओं से संबंधित ग्रंथ या नियमावली शामिल हैं - अली बिन उस्मान हुजविरी (निधन 1071 ई) का कशफ-उल-महजूब इस शैली का एक उदाहरण है। यह इतिहासकारों को यह समझने में सक्षम बनाता है कि उपमहाद्वीप के बाहर की परंपराओं ने भारत में सूफी विचारों को कैसे प्रभावित किया।
युग्म 1 सुमेलित नहीं है: मकतूबत (शाब्दिक रूप से, "लिखित" पत्रों का संग्रह); सूफी आचार्यों द्वारा, उनके शिष्यों और सहयोगियों को संबोधित कर लिखे गए पत्र - जहाँ ये हमें शेख के धार्मिक सत्य के अनुभव के बारे में बताते हैं जिसे वे दूसरों के साथ साझा करना चाहते थे, वहीं ये प्राप्तकर्ताओं की जीवन स्थितियों को भी दर्शाते हैं तथा उनकी आकांक्षाओं और कठिनाइयों दोनों आध्यात्मिक और सांसारिक के समाधान हैं। सत्रहवीं शताब्दी के विख्यात नक्शबंदी शेख अहमद सरहिंदी (1624 में निधन) के पत्र मकतूबत-ए इमाम रब्बानी (सरहिंदी की विचारधारा प्रायः अकबर के उदार और गैर-सांप्रदायिक विचारों के विपरीत होती है) की विद्वानों द्वारा उनमें से सबसे अधिक बार चर्चा की जाती है।
युग्म 2 सुमेलित नहीं है: मलफुजत (शाब्दिक रूप से, "उक्त "; सूफी संतों का संवाद) -मलफुजत का एक प्रारंभिक पाठ फवाद-अल-फुआद है, जो एक प्रसिद्ध फारसी कवि अमीर हसन सिज्जी देहलवी द्वारा संकलित है जिसमें शेख निजामुद्दीन औलिया के संवादों का एक संग्रह है। शेखों की अनुमति से विभिन्न सूफी सिलसिलों द्वारा मलफुजतों का संकलन किया गया था; इसमें स्पष्ट उपदेशात्मक उद्देश्य निहित थे। दक्कन सहित उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों से कई उदाहरण मिले हैं। इनका संकलन कई शताब्दियों में हुआ था।
युग्म 3 सुमेलित है: तज़किरा (शाब्दिक रूप से, "उल्लेख करना और यादगार बनाना"; संतों की जीवनी) - मीर खुर्द किरमानी द्वारा चौदहवीं शताब्दी में लिखा गया सियार-उल-औलिया भारत का पहला सूफी तजकिरा था। यह मुख्य रूप से चिश्ती संतों से संबंधित था। सबसे प्रसिद्ध तज़किरा अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी (1642 ई में निधन) का अख़बार-उल-अख़्यार है। तज़किरा के लेखकों ने प्रायः अपने स्वयं के वर्गों की प्रधानता स्थापित करने और अपनी आध्यात्मिक वंशावली का महिमामंडन करने का कार्य किया। कई विवरण अक्सर अकल्पनीय हैं, विलक्षणता से भरपूर है। तथापि, ये इतिहासकारों के लिए बहुत मूल्यवान हैं तथा परंपरा की प्रकृति को पूरी तरह से समझने में उनके लिए सहायक हैं।