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Question

Q. Consider the following statements:

1. The Doctrine of Pith and Substance implies that what cannot be done directly, cannot be done indirectly too.
2. The Doctrine of Colourable Legislation comes into the picture when there is a conflict between the different subjects in different lists.
3. The Doctrine of eclipse states that if any law becomes contradictory to the fundamental rights, then it does not permanently die but becomes inactive.

Which of the statements given above is/are incorrect?


Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

1. तत्व और सार के सिद्धांत का तात्पर्य है कि जो प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है तथा वह भी जो अप्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है।
2. संभाव्य विधान का सिद्धांत तब सामने आता है जब विभिन्न सूचियों में सूचीबद्ध विभिन्न विषयों के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है।
3. ग्रहण का सिद्धांत कहता है कि यदि कोई कानून मौलिक अधिकारों का विरोधाभासी होता है, तो यह स्थायी रूप से समाप्त नहीं हो जाता है,बल्कि यह निष्क्रिय हो जाता है।

ऊपर दिए गए कथनों में कौन सा/से कथन गलत है/हैं?

A

1 and 2 only
केवल 1 और 2
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B

2 and 3 only
केवल 2 और 3
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C

3 only
केवल 3
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D

2 only
केवल 2
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Solution

The correct option is A
1 and 2 only
केवल 1 और 2
Statement 1 is incorrect:
‘Pith and Substance’ means the true nature of law. This doctrine comes into the picture when there is a conflict between the different subjects in different lists. There is an interpretation of List 1 and List 2 of the Constitution of India.T here can be a situation when a subject of one list touches on the subject of another List. It was applied by the Supreme Court in the case of State of Bombay Vs F.N Balasar.

Statement 2 is incorrect:
The expression ‘colourable legislation’ simply means what cannot be done directly, cannot be done indirectly too. This is applied when the legislature enacting the law has transgressed its power as is mentioned in the Constitution. It was applied by the Supreme Court of India in the case State of Bihar vs Kameshwar Singh and it was held that the Bihar Land Reforms Act was invalid.

Statement 3 is correct:
The doctrine states that if any law becomes contradictory to the fundamental rights then it does not permanently die but becomes inactive. As soon as that fundamental right is omitted from the Constitution, the inactive law becomes revived. When a court strikes a part of law, it becomes unenforceable. Hence, an ‘eclipse’ is said to be cast on it. The law just becomes invalid but continues to exist. Supreme Court first applied this doctrine in the case of Bhikaji vs State of Madhya Pradesh where it applied to pre-constitutional law.


कथन 1 गलत है: तत्व और सार के सिद्धांत का अर्थ है कानून की वास्तविक प्रकृति।तब सामने आता है जब विभिन्न सूचियों में सूचीबद्ध विभिन्न विषयों के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है।भारत के संविधान की सूची 1 और सूची 2 की व्याख्या है।एक स्थिति बन सकती है जब एक सूची में सूचीबद्ध कोई विषय किसी अन्य सूची के विषय को स्पर्श करे।इसे सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट ऑफ बॉम्बे बनाम एफ एन बालासर के मामले में लागू किया था।

कथन 2 गलत है: 'संभाव्य विधान' का सीधा अर्थ है कि जो प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है, वह परोक्ष रूप से भी नहीं किया जा सकता है।यह तब लागू किया जाता है जब कानून बनाने वाली विधायिका अपनी शक्ति का उल्लंघन करती है, जैसा कि संविधान में उल्लेखित है।यह भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बिहार राज्य बनाम कामेश्वर सिंह के मामले में लागू किया गया था और यह माना गया था कि बिहार भूमि सुधार अधिनियम अमान्य था।

कथन 3 सही है: यह सिद्धांत कहता है कि यदि कोई कानून मौलिक अधिकारों का विरोधाभासी होता है, तो यह स्थायी रूप से समाप्त नहीं हो जाता है,बल्कि यह निष्क्रिय हो जाता है।जैसे ही उस मौलिक अधिकार को संविधान से हटा दिया जाता है, निष्क्रिय कानून पुनर्जीवित हो जाता है।जब अदालत कानून के एक हिस्से पर चोट करती है, तो यह अप्रवर्तनीय हो जाता है।इसलिए, इसे इस पर 'ग्रहण' कहा जाता है।सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले इस सिद्धांत को मध्यप्रदेश राज्य बनाम भीकाजी के मामले में लागू किया, जहां इसने पूर्व-संवैधानिक कानून को लागू किया था।

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