Q. Consider the following statements with reference to Indian Independence Act:
1. It empowered the Constituent Assembly to repeal any act of British Parliament including the Independence Act itself.
2. The act did not allow Princely states to remain Independent but to join either dominions of India or Pakistan.
3. It granted full powers to the Governor-General for reservation or veto of bills passed by the assembly.
Which of the above given statements is/are correct?
Q. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. इसने संविधान सभा को स्वतंत्रता अधिनियम सहित ब्रिटिश संसद के किसी भी अधिनियम को निरस्त करने का अधिकार दिया।
2. इस अधिनियम ने रियासतों को स्वतंत्र नहीं रहने दिया बल्कि उनके लिए अनिवार्य किया की उन्हें भारत या पाकिस्तान दोनों में से किसी के प्रभुत्व में शामिल होना होगा ।
3. इसने विधानसभा द्वारा पारित बिलों पर रोक या वीटो के लिए गवर्नर-जनरल को पूर्ण अधिकार प्रदान किए।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा /से सही है / हैं?
व्याख्या :
लॉर्ड माउंटबेटन (भारत का अंतिम वायसराय) ने मई 1947 में एक योजना का प्रस्ताव रखा था जिसके अनुसार प्रांतों को स्वतंत्र उत्तराधिकारी राज्य घोषित किया जाना चाहिए, जिसमें उनको यह अधिकार होगा कि वे निर्वाचित विधानसभा में शामिल हो या नहीं। 18 जुलाई,1947 को ब्रिटिश संसद ने माउंटबेटन योजना को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के रूप में प्रमाणित किया। तथा इसे कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने स्वीकार किया।
कथन 1 सही है: ब्रिटिश भारत को दो प्रभुत्वों में विभाजित किया जाना था - भारत और पाकिस्तान। इसने दोनो देशों की संविधान सभा को अपना संविधान बनाने तथा अपनाने और स्वतंत्रता अधिनियम सहित ब्रिटिश संसद के किसी भी अधिनियम को निरस्त करने की शक्ति प्रदान की ।
कथन 2 गलत है: रियासतों को या तो स्वतंत्र रहने या भारत या पाकिस्तान में प्रवेश करने का विकल्प दिया गया था। इन देशों पर ब्रिटिश आधिपत्य को समाप्त कर दिया गया।
कथन 3 सही है: इस अधिनियम द्वारा वायसराय के पद को समाप्त कर दिया गया तथा भारत और पाकिस्तान के शासन के लिए एक गवर्नर जनरल का पद सृजित किया जायेगा जिसे ब्रिटिश राजा द्वारा ब्रिटिश कैबिनेट की सलाह पर नियुक्त किया जाना था। इसने ब्रिटिश सम्राट को अपनी मंजूरी के लिए कुछ बिलों को वापस लेने या मांगने के अधिकार से वंचित कर दिया लेकिन यह अधिकार गवर्नर जनरल के लिए आरक्षित था। गवर्नर जनरल को अपने राजा के नाम पर किसी भी बिल को स्वीकार करने की पूरी शक्ति होगी। गवर्नर-जनरल और प्रांतीय गवर्नर राज्य के संवैधानिक प्रमुख बनाए गए थे। उन्हें सभी मामलों में मंत्रियों की संबंधित परिषदों की सलाह पर कार्य करने के लिए बनाया गया था।