wiz-icon
MyQuestionIcon
MyQuestionIcon
1
You visited us 1 times! Enjoying our articles? Unlock Full Access!
Question

Q. In case of inaction of the State in implementing an enacted legislation which makes provision for humane conditions of work, it would amount to denial of which of the following Fundamental Rights in India?

Q. एक अधिनियमित कानून जो कार्य की मानवीय स्थितियों के लिए प्रावधान करता है, को लागू करने में राज्य की निष्क्रियता के मामले में, यह भारत में निम्नलिखित मौलिक अधिकारों में से किसको अस्वीकार करने के समान होगा?

A

Right to freedom of speech and expression under Article 19 (1) (a).
अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
No worries! We‘ve got your back. Try BYJU‘S free classes today!
B

Right to live with human dignity under Article 21.
अनुच्छेद 21 के तहत मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार।
Right on! Give the BNAT exam to get a 100% scholarship for BYJUS courses
C

Provision of humane conditions of work by the state under Article 42.
अनुच्छेद 42 के तहत राज्य द्वारा कार्य की मानवीय स्थितियों का प्रावधान।
No worries! We‘ve got your back. Try BYJU‘S free classes today!
D

Right to practice any profession under Article 19 (1) (g).
अनुच्छेद 19 (1) (g) के तहत किसी भी पेशे को करने का अधिकार।
No worries! We‘ve got your back. Try BYJU‘S free classes today!
Open in App
Solution

The correct option is B
Right to live with human dignity under Article 21.
अनुच्छेद 21 के तहत मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार।
Explanation:

In case of inaction of the State in implementing an enacted legislation which makes provision for humane conditions of work, it would amount to denial of right to live with human dignity under Article 21 of the Constitution of India. The Supreme Court in Bandhua Mukti Morcha vs Union of India (1984) case, stated that the right to live with human dignity enshrined in Article 21 derives its life breath from the Directive Principles of State Policy and particularly Article 42. Since, the Directive Principles of State Policy are not enforceable in a court of law, it may not be possible to compel the State through the judicial process to make provision by statutory enactment or executive fiat for ensuring these basic essentials which go to make up a life of human dignity. But, where legislation is already enacted by the State providing this basic requirement to the workmen, the State can certainly be obligated to ensure observance of such legislation. Hence, inaction on the part of the State in securing implementation of such legislation would amount to denial of the right to live with human dignity enshrined in Article 21.

व्याख्या:

एक अधिनियमित कानून जो कार्य की मानवीय स्थितियों के लिए प्रावधान करता है, को लागू करने में राज्य की निष्क्रियता के मामले में, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मानव गरिमा के साथ जीने के अधिकार से वंचित करना होगा। बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ (1984) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांतों और विशेष रूप से अनुच्छेद 42 से अपना अस्तित्व प्राप्त करता है। चूँकि, राज्य के नीति निर्देशक तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं किये जा सकते हैं, इन बुनियादी आवश्यकताओं जो मानव के लिए गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक है, को सुनिश्चित करने के लिए वैधानिक अधिनियमन या कार्यकारी व्यवस्थापत्र द्वारा प्रावधान करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से राज्य को बाध्य करना संभव नहीं है। लेकिन, जहां पहले से ही कामगारों को यह बुनियादी आवश्यकता प्रदान करने के लिए कानून लागू है, राज्य निश्चित रूप से ऐसे कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हो सकता है। इसलिए, इस तरह के कानून को लागू करने में राज्य की ओर से निष्क्रियता को अनुच्छेद 21 में मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार से वंचित करना माना जाएगा ।

flag
Suggest Corrections
thumbs-up
0
Join BYJU'S Learning Program
similar_icon
Related Videos
thumbnail
lock
Right To Education
CIVICS
Watch in App
Join BYJU'S Learning Program
CrossIcon