The correct option is C
Minerva Mills Case
मिनर्वा मिल्स वाद
Explanation:
Statement (a) is incorrect: Kesavananda Bharati Case (1973): In the landmark judgement Supreme Court held that, Parliament can amend any provision of the Indian Constitution in order to fulfil its socio-economic obligations guaranteed to the citizens in the Preamble, provided that such amendment did alter the Constitution’s basic structure. Thus, in Kesavananda Bharati Case, Doctrine of Basic Structure was ushered by the supreme court.
Statement (b) is incorrect: I. R. Coelho Case (2007): Also known as the Ninth Schedule Case, unanimous judgement was delivered by a 9-judge bench of Supreme Court upholding the validity of the Doctrine of Basic Structure propounded in the Kesavananda Bharati case. The Court also upheld the power of the Judiciary to review any such law which in its opinion would in any way destroy the basic structure of the Constitution. Thus in effect, this case put an end to any controversy that was left behind regarding the validity and implementation of the basic structure doctrine.
Statement (c) is correct: Minerva Mills Case (1980): The Supreme Court declared that the Indian constitution is founded on the bedrock of balance between Fundamental Rights and Directive Principles of State Policy (DPSP).
According to the Doctrine of Harmonious Construction, a provision of the statute should not be interpreted or construed in isolation but as a whole, to remove any inconsistency or repugnancy.
In Kerala Education Bill 1951 case, it was held that in deciding the fundamental rights the court must consider the directive principle and adopt the principle of harmonious construction. So, two possibilities are given effect as much as possible by striking a balance.
Statement (d) is incorrect: Berubari Union case (1960): The Supreme Court in the Berubari Union case concluded that the preamble is not a part of our Constitution. The Parliament has the power to amend our Constitution including Article 1. A cession of a part of the territory of India would lead to the diminution of the territory of India. Such an amendment can be made under Article 368 of our Constitution.
व्याख्या:
कथन (a) गलत है: केशवानंद भारती वाद (1973): उच्चतम न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि संसद प्रस्तावना में नागरिकों को प्रदत्त अपने सामाजिक-आर्थिक दायित्वों को पूरा करने के लिए भारतीय संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन कर सकती है, बशर्ते कि इस तरह के संशोधन से संविधान की मूल संरचना में परिवर्तन न हो। इस प्रकार, केशवानंद भारती मामले में, मूल संरचना के सिद्धांत को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता दी गई थी।
कथन (b) गलत है: आई. आर. कोएल्हो वाद (2007): इसे नौवीं अनुसूची मामले के रूप में भी जाना जाता है, इसमें सर्वसम्मति से केशवानंद भारती मामले में प्रस्तावित मूल संरचना के सिद्धांत की वैधता को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट की 9-न्यायाधीश की पीठ द्वारा निर्णय दिया गया था।
न्यायालय ने न्यायपालिका की ऐसी किसी भी कानून की समीक्षा करने की शक्ति को भी बरकरार रखा, जो इसकी राय में किसी भी तरह से संविधान के मूल ढांचे को नष्ट कर सकता है। इस प्रकार, इस मामले ने मूल संरचना सिद्धांत की वैधता और कार्यान्वयन के बारे में सभी विवादों का अंत कर दिया।
कथन (c) सही है: मिनर्वा मिल्स वाद (1980): उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान की स्थापना मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के बीच संतुलन के आधार पर की गई है। सद्भावपूर्ण संरचना सिद्धांत (Doctrine of Harmonious Construction) के अनुसार, किसी भी विसंगति या प्रतिकूलता को दूर करने के लिए विधि के एक प्रावधान की व्याख्या, पृथकत्व में नहीं, बल्कि एक पूर्ण इकाई के रूप में की जानी चाहिए।
केरल शिक्षा विधेयक 1951 मामले में यह कहा गया था कि मौलिक अधिकारों को तय करने में अदालत को निर्देशक सिद्धांत पर विचार करना चाहिए तथा सद्भावपूर्ण संरचना सिद्धांत को अपनाना चाहिए। इस तरह दो संभावनाओं को एक संतुलन बनाकर जितना संभव हो, उतना प्रभाव दिया जाता है।
कथन (d) गलत है: बेरुबारी यूनियन वाद (1960): बेरुबारी यूनियन मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रस्तावना हमारे संविधान का हिस्सा नहीं है। संसद के पास हमारे संविधान में संशोधन करने की शक्ति है, जिसमें अनुच्छेद 1 शामिल है। भारतीय क्षेत्र के एक हिस्से के अर्पण (cession) से क्षेत्र में कमी आएगी । हमारे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत ऐसा संशोधन किया जा सकता है।