Q. प्राचीन भारत के दौरान भूमिदान की प्रणाली के माध्यम से शासकों द्वारा किस/किन उद्देश्य/उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती थी?
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
A
केवल 1
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B
केवल 1 और 2
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C
केवल 2 और 3
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D
1, 2 और 3
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Solution
The correct option is D
1, 2 और 3 व्याख्या:
ईसवीं की प्रारंभिक शताब्दियों से ही भूमिदान के प्रमाण मिलते हैं। इनमें से कई का उल्लेख अभिलेखों में दर्ज थे। इनमें से कुछ अभिलेख पत्थर पर लिखे गए थे, लेकिन अधिकांश ताम्र पत्रों पर खुदे होते थे जिन्हें संभवतः उन लोगों को प्रमाण रूप में दिया जाता था जो भूमिदान लेते थे। भूमिदान के वो प्रमाण मिले हैं वे साधारण तौर पर धार्मिक संस्थानों या ब्राह्मणों को दिए गए थे। अग्रहार उस भूभाग को कहते थे जो ब्राह्मणों को दान किया जाता था। इस प्रकार धार्मिक अधिकारियों को दिए गए भूमिदान के माध्यम से शासकों द्वारा धार्मिक योग्यता प्राप्त की जाती थी।
इस प्रकार भूमिदान अभिलेख देश के कई हिस्सों में प्राप्त हुए हैं। क्षेत्रों में दान में दी गई भूमि की माप में अन्तर है: कहीं-कहीं छोटे-छोटे टुकड़े, तो कहीं बड़े-बड़े टुकडें दान में दिए गए हैं। साथ ही भूमिदान में दान प्राप्त करने वाले लोगों के अधिकारों में भी क्षेत्रीय परिवर्तन मिलते हैं। इतिहासकारों में भूमिदान का प्रभाव एक गर्म वाद-विवाद का विषय बना हुआ है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भूमिदान शासक वंश द्वारा कृषि को नए क्षेत्रों में प्रोत्सहोत करने की एक रणनीति थी, जबकि कुछ का कहना है कि भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत प्राप्त होता है अर्थात राजा का शासन सामंतों पर दुर्बल होने लगा तो उन्होंने भूमिदान के माध्यम से अपने समर्थक जुटाने प्रारंभ कर दिए। उनका यह मानना है कि राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे। उनका नियंत्रण ढीला होता जा रहा था इसलिए वे अपनी शक्ति का आडंबर प्रस्तुत करना चाहते थे।