Q. Which of the following Indian states were annexed by Lord Dalhousie by the application of the Doctrine of Lapse ?
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Q. निम्नलिखित में से किस भारतीय राज्य को लॉर्ड डलहौजी ने डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स(व्यपगत का सिद्धांत) का प्रयोग कर हड़प्प लिया था?
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Explanation
The chief instrument through which Lord Dalhousie implemented his policy of annexation was the Doctrine of Lapse. Under this Doctrine, when the ruler of a protected state died without a natural heir, his state was not to pass to an adopted heir as sanctioned by the age-old tradition of the country. Instead, it was to be annexed to the British dominions unless the adoption had been clearly approved earlier by the British authorities. Many states, including Satara in 1848 and Nagpur and Jhansi in 1854, were annexed by applying this doctrine.
The treaty of Bassein in 1803 brought Banda legally under British rule . It was not annexed during Dalhousie’s rule nor was it annexed by the application of the Doctrine of Lapse. The Doctrine of Lapse began to be applied by the British for the annexation of native Indian states from 1840s.
Additional Information
Dalhousie also refused to recognise the titles of many ex-rulers or to pay their pensions. Thus, the titles of the Nawabs of Carnatic and of Surat and the Raja of Tanjore were extinguished.
व्याख्या:
मुख्य उपकरण जिसके माध्यम से लॉर्ड डलहौजी ने अपनी हड़प्प नीति को लागू किया वह था डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स।इस सिद्धांत के तहत, जब एक संरक्षित राज्य के शासक की मृत्यु उत्तराधिकारी के बिना हो जाती थी, तो उसका राज्य किसी गोद लिए हुए उत्तराधिकारी को मान्यता नहीं देता था।1848 में सतारा और 1854 में नागपुर और झाँसी सहित कई राज्यों को इस सिद्धांत को लागू करके हड़प लिया गया।
1803 में बसीन की संधि द्वारा बांदा को ब्रिटिश शासन के अंतर्गत लाया गया।इसे इसे न तो डलहौजी के शासन के दौरान और न ही डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के तहत हड़पा गया था।1840 के दशक से देशी राज्यों को हड़पने के लिए अंग्रेजों द्वारा व्यपगत का सिद्धांत(डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) लागू किया जाने लगा।
अतिरिक्त जानकारी:
डलहौज़ी ने कई पूर्व शासकों की उपाधियों को मान्यता देने या उनको पेंशन का भुगतान करने से भी इनकार कर दिया।इस प्रकार, कर्नाटक और सूरत के नबावों और तंजौर के राजा की पदवी समाप्त हो गई।