The correct option is D
1, 2 and 3
1, 2 और 3
Explanation:
In the 1840s, certain Maharashtrian intellectuals such as Bhaskar Pandurang Tarkhadkar, Govind Vitthal Kunte (popularly known as Bhau Mahajan), and Ramkrishna Vishwanath criticised the British rule for economically exploiting India, particularly by draining its resources.
Statement 1 is correct: Bhaskar Pandurang Tarkhadkar argued that the destruction of the indigenous industry resulted in poverty and misery of the artisans. He also criticised the no-tariff policy of the colonial government whereby ‘British goods were forced upon India without paying any duty.
Statement 2 is correct: Similarly, Govind Vitthal Kunte criticised the imperialist policies of waging wars and charging them on the Indian treasury, which led to drain of wealth from India.
Statement 3 is correct: Ramkrishna Vishwanath attributed India’s poverty mainly to the drain of wealth and the adverse balance of trade. His criticism, though sketchy, covered several aspects of this economic discrimination which was later taken up much more comprehensively.
Additional Information: The most important economic critiques of British rule in India were Dadabhai Naoroji, M G Ranade, G. Subramaniya Iyer, G.V. Joshi, R C Dutt, G K Gokhale, Bal Gangadhar Tilak and Surendranath Banerjea.
व्याख्या:
1840 के दशक में भास्कर पांडुरंग तर्खडकर, गोविंद विठ्ठल कुंटे (जिन्हें भाऊ महाजन के नाम से जाना जाता है), और रामकृष्ण विश्वनाथ जैसे महाराष्ट्र के कुछ बुद्धिजीवियों ने भारत का आर्थिक रूप से शोषण करने हेतु ब्रिटिश शासन की आलोचना की, विशेष रूप से भारत के संसाधनों का बहिर्गमन करके।
कथन 1 सही है: भास्कर पांडुरंग तर्खडकर ने तर्क दिया कि स्वदेशी उद्योग के विनाश से कारीगरों की दुर्दशा हुई। उन्होंने औपनिवेशिक सरकार की नो-टैरिफ नीति की भी आलोचना की, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश वस्तुओं को बिना किसी शुल्क के भारत में भेजा जाता था।
कथन 2 सही है: इसी तरह, गोविंद विठ्ठल कुंटे ने युद्ध शुरू करने और उनका व्यय भारतीय खजाने से करने की साम्राज्यवादी नीतियों की आलोचना की, जिसके कारण भारत से धन का बहिर्गमन हुआ।
कथन 3 सही है: रामकृष्ण विश्वनाथ ने भारत की गरीबी के लिए मुख्य रूप से धन के बहिर्गमन और प्रतिकूल व्यापार संतुलन को उत्तरदायी ठहराया। उनकी आलोचना में शुरुआत से आर्थिक भेदभाव के कई पहलुओं को कवर किया गया था, जिसे बाद में अधिक व्यापक रूप से देखा गया।
अतिरिक्त जानकारी: भारत में ब्रिटिश शासन के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक आलोचकों में दादाभाई नौरोजी, एम जी रानाडे, जी. सुब्रमण्यम अय्यर, जी.वी. जोशी, आर सी दत्त, जी के गोखले, बाल गंगाधर तिलक और सुरेंद्रनाथ बनर्जी थे।