Q. Which of the following were the features of the land revenue policy of Permanent Settlement introduced by Lord Cornwallis?
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Q. लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा शुरू की गई स्थायी बंदोबस्त योजना की भूमि राजस्व नीति की विशेषताएँ निम्नलिखित में से कौन थीं?
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Explanation
Statement 1 is incorrect
According to Permanent Settlement, the zamindars were not only to act as agents of the Government in collecting land revenue from the ryot but also to become the owners of the entire land in their zamindaris. Their right of ownership was made hereditary and transferable. The zamindar had to pay his revenue rigidly on the due date even if the crop had failed for some reason; otherwise his lands were to be sold.
Statement 2 is correct
The cultivators were reduced to the low status of mere tenants and were deprived of long-standing rights to the soil and other customary rights. The use of the pasture and forest lands, irrigation canals, fisheries, and homestead plots and protection against enhancement of rent were some of their rights which were sacrificed. In fact the tenantry of Bengal was left entirely at the mercy of the zamindars.
Statement 3 is correct
The zamindars were to give 10/11th of the rental they derived from the peasantry to the state, keeping only 1/11th for themselves. But the sums to be paid by them as land revenue were fixed in perpetuity. If the rental of a zamindar‟s estate increased due to extension of cultivation and improvement in agriculture, or his capacity to extract more from his tenants, or any other reason, he would keep the entire amount of the increase.
Additional Information
The initial fixation of revenue was made arbitrarily and without any consultation with the zamindars. The attempt of the officials was to secure the maximum amount. As a result, the rates of revenue were fixed very high.
व्याख्या:
कथन 1 गलत है।
स्थायी बंदोबस्त के अनुसार ज़मींदार न केवल रैयत से भू-राजस्व वसूलने में सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करते थे, बल्कि अपनी जमींदारी की पूरी ज़मीन के भी मालिक बन जाते थे। स्वामित्व का उनका अधिकार वंशानुगत और हस्तांतरणीय था। जमींदार को अपने राजस्व का भुगतान नियत तारीख पर करना पड़ता था, भले ही फसल किसी कारण से ख़राब क्यों न हो गई हो । नियत तारीख पर भुगतान न करने पर जमींदार की जमीनें बेच कर राजस्व वसूला जाता था ।
कथन 2 सही है।
काश्तकारों को मात्र किरायेदार बनाया गया था और भूमि और उन्हें अन्य प्रथागत अधिकारों से लंबे समय तक वंचित किया गया था। चरागाह और वन भूमि का उपयोग, सिंचाई नहरें, मत्स्य पालन, गृहस्थी के भूखंड और किराए की वृद्धि के खिलाफ संरक्षण उनके कुछ अधिकार थे जिन्हें छीन लिया गया था। वास्तव में बंगाल के काश्तकार को पूरी तरह से जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया था।
कथन 3 सही है।
जमींदारों को किसान राज्य से प्राप्त होने वाले किराये का 10/11 वाँ हिस्सा देता था और अपने लिए केवल 1/11 वाँ हिस्सा ही रखता था । लेकिन भू-राजस्व के रूप में उनके द्वारा किया जाने वाला भुगतान फिक्स था। यदि एक ज़मींदार की संपत्ति का किराया खेती में विस्तार , कृषि में सुधार, या उसके किरायेदारों से अधिक कर लेने या किसी अन्य कारण से बढ़ता था तो उस वृद्धि पर उसी का अधिकार होता था।
अतिरिक्त जानकारी
राजस्व का प्रारंभिक निर्धारण मनमाने ढंग से और बिना किसी परामर्श के जमींदारों के साथ किया गया था। अधिकारियों का प्रयास अधिकतम राजस्व राशि को वसूल करने का था। परिणामस्वरूप, राजस्व की दरें बहुत अधिक तय की गईं थी ।