Q. With reference to Private Members’ Bills, consider the following statements:
Which of the statements given above are correct?
Q. गैर-सरकारी सदस्य विधेयकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
Explanation: Bills introduced in Parliament are of two kinds: public bills and private bills (also known as government bills and private members’ bills, respectively). Though both are governed by the same general procedure and pass through the same stages in the House, they do have differences as well. When an MP other than a minister introduces a bill, it is called a ‘Private Bill’.
Statement 1 is incorrect: Public introduction in the house requires seven days' notice. Whereas the introduction of a private bill requires one month’s notice, however, it can be introduced at a shorter notice if permitted by the presiding officer.
Statement 2 is correct: Public bill is introduced in the parliament by a minister. The Private Member Bill is introduced in the Parliament by a private member (not a minister). The member who introduces the Bill, becomes the member in-charge of the Bill.
Statement 3 is incorrect: Generally, it is the last 2 and a half hours that are allotted for transactions related to the Private Members’ Bill. Any other day than a Friday can be allotted in consultation with the Leader of the House. In case there is no sitting of the house on Friday, the speaker may allot the stipulated time on any other day of the week.
Statement 4 is correct: ‘Absolute Veto’ refers to the power of the President to withhold his assent to a bill passed by the Parliament. A Private Members’ Bill is subject to the Absolute Veto power of the Indian President. A bill, subject to an Absolute Veto, ends and does not become an Act.
व्याख्या: संसद में प्रस्तुत किए गए विधेयक दो प्रकार के होते हैं: सार्वजनिक विधेयक और गैर-सरकारी/निजी विधेयक (क्रमशः सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी सदस्य विधेयक के रूप में भी जाने जाते हैं)। हालाँकि, दोनों एक ही सामान्य प्रक्रिया द्वारा शासित होते हैं और सदन में एक ही चरण से गुजरते हैं, परंतु उनके बीच अंतर भी होते हैं। जब एक मंत्री के अलावा कोई अन्य सांसद कोई विधेयक प्रस्तुत करता है, तो उसे गैर-सरकारी विधेयक कहा जाता है।
कथन 1 गलत है: सदन में सरकारी विधेयक प्रस्तुत करने के लिए सात दिनों के नोटिस की आवश्यकता होती है। जबकि एक गैर-सरकारी विधेयक को प्रस्तुत करने के लिए एक महीने के नोटिस की आवश्यकता होती है। हालांकि, यदि पीठासीन अधिकारी द्वारा अनुमति दी जाती है, तो इसे कम समय के नोटिस पर प्रस्तुत किया जा सकता है।
कथन 2 सही है: सरकारी विधेयक संसद में एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। गैर-सरकारी सदस्य विधेयक संसद में एक गैर-सरकारी सदस्य (जो एक मंत्री नहीं होता) द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। विधेयक को पुरःस्थापित करने वाला सदस्य विधेयक का प्रभारी सदस्य (member in-charge) बन जाता है।
कथन 3 गलत है: प्रत्येक अधिवेशन में हर दूसरे शुक्रवार को गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों से संबंधित कार्य निपटाने के लिए अंतिम ढाई घंटे का समय नियत किया जाता है। शुक्रवार के अलावा कोई भी दिन सदन के नेता के परामर्श से आवंटित किया जा सकता है। यदि शुक्रवार को सदन की बैठक नहीं होती है तो अध्यक्ष सप्ताह में किसी अन्य दिन निर्धारित समय आवंटित कर सकता है।
कथन 4 सही है: आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto) संसद द्वारा पारित किसी विधेयक पर अपनी सहमति न देने की राष्ट्रपति की शक्ति को दर्शाता है। एक गैर-सरकारी सदस्य विधेयक भारतीय राष्ट्रपति की आत्यंतिक वीटो शक्ति के अधीन होता है। एक विधेयक, आत्यंतिक वीटो का प्रयोग होने पर समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता है।