The correct option is
A
2 only
केवल 2
Explanation:
Diagnostic tests for COVID-19 have loomed large in the ongoing coronavirus pandemic as an essential tool to track the spread of the disease. Most of these tests lie in the three broad categories of RT-PCR, Serological test, and CRISPR based techniques.
Statement 1 is incorrect: Most testing for COVID-19 is currently done on viral genetic material from nose and throat swabs, using a workhorse tool of molecular biology known as reverse transcription polymerase chain reaction (RT-PCR).
The test works by amplifying a specific genetic sequence in the virus. Short complementary sequences known as primers help to get the copying started. But PCR can only detect viruses while it is present in a person. It doesn’t reveal much about a resolved infection.
It’s also known to sometimes produce false positives if reagents in a lab become contaminated.
Labs worldwide have customized their PCR tests for SARS-CoV-2, using different primers targeting different sections of the virus’s genetic sequence.
Statement 2 is correct: The CRISPR techniques use the gene-editing ability to recognize specific genetic sequences and cut them. In the process, it also cuts a ‘reporter’ molecule added to the reaction, which reveals the presence of viral genetic material relatively quickly.
The key advantage is that a CRISPR reaction is incredibly specific and can be done in 5–10 minutes.
Statement 3 is incorrect: Serological tests can detect past viral infections by looking for antibodies someone has produced to fight the virus. They exploit antibody–antigen recognition, either by using monoclonal antibodies (mAbs) to detect viral antigens in clinical samples or by using cloned viral antigens to detect patient antibodies directed against the virus.
Such a test could show the extent of viral spread in a community and provide useful public-health information.
Additional Information: A serological test is advantageous because it can detect antibodies even if a patient has recovered, whereas a PCR test can detect the virus only if the person is currently sick. However, both tests might miss cases if samples are taken too early, when the viral load is too low or if the person's body hasn't produced antibodies against the virus.
व्याख्या:
COVID -19 के लिए नैदानिक परीक्षण रोग के प्रसार को ट्रैक करने के एक आवश्यक उपकरण के रूप में अस्पष्ट प्रतीत हो रहे हैं । इनमें से अधिकांश परीक्षण आरटी-पीसीआर, सीरोलॉजिकल परीक्षण और सीआरआईएसपी आर आधारित तकनीकों की तीन व्यापक श्रेणियों में निहित हैं।
कथन 1 गलत है: वर्तमान में COVID -19 पर हो रहे अधिकांश परीक्षण रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) के रूप में जाना जाने वाला आणविक जीव विज्ञान के एक वर्कहॉर्स टूल का उपयोग करके नाक और गले की सूजन से उत्पन्न वायरल आनुवंशिक मैटेरियल पर किए गए हैं।
यह परीक्षण, वायरस में एक विशिष्ट आनुवंशिक अनुक्रम को बढ़ाकर काम करता है। प्राइमरों के रूप में जाना जाने वाला लघु पूरक अनुक्रम नकल(copying) शुरू करने में मदद करता है । लेकिन पीसीआर, वायरस का तभी पता लगा सकता है जब वायरस किसी व्यक्ति में मौजूद हो । यह एक हल किए गए संक्रमण(resolved infection) के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताता है।यदि प्रयोगशाला में अभिकर्मक दूषित हो जाते हैं तो यह कभी-कभी गलत पॉजिटिव केस भी बता देता है ।
वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम के विभिन्न वर्गों को लक्षित करने वाले विभिन्न प्राइमरों का उपयोग करके, दुनिया भर में प्रयोगशालाओं ने SARS-CoV-2 के लिए अपने पीसीआर परीक्षणों को अनुकूलित किया है।
कथन 2 सही है: सीआरआईएसपीआर तकनीक विशिष्ट आनुवंशिक अनुक्रमों को पहचानने और उन्हें काटने के लिए जीन-संपादन क्षमता(gene-editing ability) का उपयोग करती है। इस प्रक्रिया में, यह प्रतिक्रिया में जोड़े गए एक 'रिपोर्टर' अणु को भी काट देता है, जिससे वायरल आनुवंशिक सामग्री की उपस्थिति अपेक्षाकृत तेज़ी से प्रकट होती है। इसमें मुख्य लाभ यह है कि एक CRISPR प्रतिक्रिया अविश्वसनीय रूप से विशिष्ट है और इसे 5-10 मिनट में संपन्न किया जा सकता है।
कथन 3 गलत है: वायरस से लड़ने के लिए किसी व्यक्ति द्वारा बनाए गए एंटीबॉडी का पता लगाकर सीरोलॉजिकल परीक्षण के माध्यम से पिछले वायरल संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। इसमें क्लोन वायरल प्रतिजन (antigen) का उपयोग करके या तो नैदानिक नमूनों में वायरल एंटीजन का पता लगाने के लिए या वायरस के खिलाफ निर्देशित रोगी एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए एंटीबॉडी-एंटीजन रिकग्निशन का प्रयोग किया जाता है। ।ऐसा परीक्षण समाज में व्याप्त वायरल विस्तार के स्तर को मापने में मदद करता है और उपयोगी सार्वजनिक स्वास्थ्य जानकारी उपलब्ध कराता है ।
अतिरिक्त जानकारी:
एक सीरोलॉजिकल परीक्षण लाभप्रद है क्योंकि यह रोगी के स्वस्थ होने के बाद भी एंटीबॉडी का पता लगा सकता है, जबकि एक पीसीआर परीक्षण अंतर्गत व्यक्ति के वर्त्तमान में बीमार होने की स्थिति में ही वायरस का पता लगाया जा सकता है, अन्यथा संभव नहीं है।
हालांकि, अग्रउल्लिखित परिस्थितियों में दोनों परीक्षण परिणाम नहीं दे पाएंगे :
- यदि नमूने बहुत जल्दी लिए जाते हैं,
- जब वायरल लोड बहुत कम होता है या
- जब तक व्यक्ति के शरीर ने वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी का विकास नहीं किया हो।