The correct option is A
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केवल 2
Explanation:
The Bengal Land Revenue Commission of 1938 was formed under the chairmanship of F.L.C. Floud. It was popularly known as the Floud Commission. It was formed to enquire into the land revenue system of Bengal. It published its report in March, 1940.
Statement 1 is incorrect: It was not formed as a result of the Tebhaga movement. On the contrary, its recommendations galvanised the farmers. In Bengal, the Kisan Sabha, which was set up as an offshoot of the Communist Party of India, gave the call for Tebhaga in June, 1940 (at a provincial Kisan conference). But the start of World War II and the great famine delayed the movement. The Tebhaga Movement eventually started in September, 1946.
Statement 2 is correct: It recommended that the sharecroppers should retain two-thirds of the produce. In Bengal, the adhiyari system was followed, under which the sharecroppers (or adhiyars) needed to give half the produce of the land to the jotedars.
Statement 3 is incorrect: It recommended that the produce must be stored in the ‘khamars’ (or threshing-floor) of the sharecroppers (not jotedars).
Additional information: The jotedars collected huge tracts of land in rural areas. The large agricultural areas under the jotedars were cultivated through sharecroppers (also known as bhagadars). The jotedars were mainly concentrated in North Bengal, whereas in other parts of Bengal they are known as haoladars, gantidars, or mandals.
व्याख्या:
1938 के बंगाल भूमि राजस्व आयोग का गठन F.L.C फ्लौड की अध्यक्षता में किया गया था। यह लोकप्रिय रूप से फ्लौड आयोग के रूप में जाना जाता था। इसका गठन बंगाल की भू-राजस्व प्रणाली के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने के लिए किया गया था। इसने मार्च, 1940 में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की।
कथन 1 गलत है: इसका गठन तेभागा आंदोलन के परिणामस्वरूप नहीं किया गया था। इसके विपरीत, इसकी सिफारिशें ने किसानों को उत्तेजित किया। बंगाल में, किसान सभा, जिसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक शाखा के रूप में स्थापित किया गया था, ने जून 1940 में (एक प्रांतीय किसान सम्मेलन में) तेभागा के लिए आह्वान किया। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत और वृहत अकाल ने आंदोलन में देरी की। तेभागा आंदोलन अंततः सितंबर, 1946 में शुरू हुआ।
कथन 2 सही है: इसने सिफारिश की कि बंटाईदारों को उपज का दो-तिहाई हिस्सा अपने पास रखना चाहिए। बंगाल में, अधियारी प्रणाली का पालन किया जाता था, जिसके तहत बटाईदारों (या अधियारों) को जोतदारों को जमीन की आधी उपज देने की आवश्यकता होती थी।
कथन 3 गलत है: इसने अनुशंसा की कि उपज को बटाईदारों के 'खमार' (threshing floor) में संग्रहीत किया जाना चाहिए (जोतदार नहीं)।
अतिरिक्त जानकारी: जोतदारों ने ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के विशाल खंड एकत्र किए थे। जोतदारों के अंतर्गत बड़े कृषि क्षेत्रों की खेती बटाईदारों (जिसे बगारदार भी कहा जाता है) के माध्यम से की जाती थी। जोतदार मुख्य रूप से उत्तर बंगाल में केंद्रित थे, जबकि बंगाल के अन्य हिस्सों में उन्हें होलादार, गेंटिदार या मंडल के रूप में जाना जाता है।