Q. With reference to the Constitutional Amendment procedure, consider the following statements:
Which of the statements given above is/are correct?
Q. संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
Explanation: An amendment of the Constitution can be initiated only by the introduction of a bill for the purpose in either House of Parliament (Lok Sabha or Rajya Sabha) and not in the state legislatures.
Statement 1 is incorrect: Article 368 under Part XX of Indian Constitution provides for two types of amendments: by a Special Majority of the Parliament and by a Special Majority of the Parliament with the ratification by half of the total states. Rest all amendments to the constitution are done through the Simple Majority of Parliament such as Establishment of new States which fall outside the purview of Article 368.
Statement 2 is incorrect: The constitutional amendment bill can be introduced either by a Minister or by a private member and does not require prior permission of the President.
Perspective: Context: Constitutional amendment process is one of the most crucial areas for UPSC examination. Multiple questions have been asked on this topic in preliminary examination. In the first appearance this question seems a bit tricky and factual but students have to overcome the factual barrier. In this question, Statement 1 attempts to play with the popular perception that no constitutional amendment can be introduced outside of Article 368. But amendments such as establishment of new states under Article 3 (Simple majority of the two houses is needed for such an amendment) lie outside Article 368. This type of question requires calmness and use of contemporary examples as we have studied that States can be created by a Simple majority i.e. Telangana. So using this very idea we can eliminate Option (a) and (c). Statement 2: Further, as we know, demand for a new state or change in the name of a state can be raised by any member of Parliament. This logic will lead us to the conclusion that Statement 2 is also incorrect. Apart from this, we can also use the logic that Parliament can amend the constitution so prior permission of the President is given to mislead a candidate. The constitution makes no difference between private or government bills with reference to Constitutional amendment under Article 368 and we also know that President’s permission is not required in this case. |
व्याख्या: संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में किसी विधेयक को पेश करने के द्वारा ही संविधान का संशोधन शुरू किया जा सकता है, न कि राज्य विधानसभाओं में।
कथन 1 गलत है: भारतीय संविधान के भाग XX के तहत अनुच्छेद 368 दो प्रकार के संशोधन का प्रावधान करता है: संसद के विशेष बहुमत द्वारा और संसद के विशेष बहुमत और कुल राज्यों की संख्या के आधे के अनुसमर्थन के द्वारा। संविधान में बाकी सभी संशोधन संसद के साधारण बहुमत के माध्यम से किए जाते हैं जैसे कि नए राज्यों की स्थापना जो अनुच्छेद 368 के दायरे से बाहर हैं।
कथन 2 गलत है: संवैधानिक संशोधन विधेयक या तो एक मंत्री या एक निजी सदस्य द्वारा पेश किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
परिप्रेक्ष्य: संदर्भ: UPSC परीक्षा के लिए संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। प्रारंभिक परीक्षा में इस टॉपिक पर कई प्रश्न पूछे गए हैं। पहली बार में यह प्रश्न थोड़ा पेचीदा और तथ्यपूर्ण लगता है, लेकिन छात्रों को तथ्यात्मक बाधा को पार करना पड़ता है। इस प्रश्न में, कथन 1 इस लोकप्रिय धारणा के साथ खेलने का प्रयास करता है कि अनुच्छेद 368 के बाहर कोई संवैधानिक संशोधन पेश नहीं किया जा सकता है। लेकिन अनुच्छेद 3 के तहत नए राज्यों की स्थापना जैसे संशोधन (ऐसे संशोधन के लिए दोनों सदनों के साधारण बहुमत की आवश्यकता है) अनुच्छेद 368 के दायरे के बाहर हैं। इस प्रकार के प्रश्न को हल करने के लिए शांत मस्तिष्क और समकालीन उदाहरणों के उपयोग की आवश्यकता है, क्योंकि हमने पढ़ा है कि राज्यों को साधारण बहुमत द्वारा द्वारा गठित किया जा सकता है, जैसा कि तेलंगाना के मामले में हुआ था। इसलिए इस जानकारी का उपयोग करके हम विकल्प (a) और (c) को विलोपित कर सकते हैं। कथन 2: इसके अलावा, जैसा कि हम जानते हैं, एक नए राज्य की माँग या राज्य के नाम में परिवर्तन को संसद के किसी भी सदस्य द्वारा उठाया जा सकता है। यह तर्क हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचाएगा कि कथन 2 भी गलत है। इसके अलावा, हम इस तर्क का भी उपयोग कर सकते हैं कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है इसलिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति अभ्यर्थी को गुमराह करने के लिए दी गई है। संविधान में अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन के संदर्भ में निजी या सरकारी विधेयकों के बीच कोई अंतर नहीं है और हम यह भी जानते हैं कि इस मामले में राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। |