Q. With reference to the Fundamental Rights of armed forces and police forces, consider the following statements:
Which of the above statements is/are correct?
Q. सशस्त्र बलों और पुलिस बलों के मौलिक अधिकारों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
Explanation:
Statement 1 is incorrect: The power to make laws under Article 33 is conferred only on the Parliament and not on the state legislatures. Any such law made by Parliament cannot be challenged in any court on the ground of contravention of any of the fundamental rights. Article 33 empowers the Parliament to restrict or abrogate the fundamental rights of the members of armed forces, paramilitary forces, police forces, intelligence agencies and analogous forces. The objective of this provision is to ensure the proper discharge of their duties and the maintenance of discipline among them.
Statement 2 is correct: Under the article 33, the Parliament has enacted the Army Act (1950), the Navy Act (1950), the Air Force Act (1950), the Police Forces (Restriction of Rights) Act, 1966, the Border Security Force Act and so on. These impose restrictions on their freedom of speech, right to form associations, right to be members of trade unions or political associations, right to communicate with the press, right to attend public meetings or demonstrations, etc.
The expression members of the armed forces’ also covers such employees of the armed forces as barbers, carpenters, mechanics, cooks, chowkidars, bootmakers, tailors who are non-combatants.
Statement 3 is incorrect: The parliament under article 33 can enact a law to exclude the court-martials (tribunals established under the military law) from the writ jurisdiction of the Supreme Court and the High Courts, so far as the enforcement of Fundamental Rights is concerned.
व्याख्या:
कथन 1 गलत है: अनुच्छेद 33 के तहत कानून बनाने की शक्ति केवल संसद को ही प्रदत्त है, न कि राज्य विधानसभाओं को। संसद द्वारा बनाए गए ऐसे किसी भी कानून को किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन के आधार पर किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। अनुच्छेद 33 संसद को सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस बलों, खुफिया एजेंसियों, और अनुरूप बलों के सदस्यों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित या निरस्त करने का अधिकार प्रदान करता है। इस प्रावधान का उद्देश्य उनके कर्तव्यों के उचित निर्वहन और उनके बीच अनुशासन को सुनिश्चित करना है।
कथन 2 सही है: अनुच्छेद 33 के तहत, संसद ने सेना अधिनियम (1950), नौसेना अधिनियम (1950), वायु सेना अधिनियम (1950), पुलिस बल (अधिकारों का निर्बन्धन) अधिनियम, 1966, सीमा सुरक्षा अधिनियम और अन्य अधिनियमों को अधिनियमित किया है। ये उनकी वाक् स्वतंत्रता के अधिकार, संगठनों के गठन के अधिकार, ट्रेड यूनियनों या राजनीतिक संगठनों के सदस्य बनने के अधिकार, प्रेस के साथ संवाद करने के अधिकार, सार्वजनिक बैठकों या प्रदर्शनों में शामिल होने के अधिकार आदि पर प्रतिबंध लगाते हैं।
इन अधिनियमों के अंतर्गत सशस्त्र बलों के गैर-लड़ाकू (non-combatants) कर्मचारी जैसे नाई, बढ़ई, मैकेनिक, रसोइया, चौकीदार, मोची, दर्जी शामिल होते हैं।
कथन 3 गलत है: जहाँ तक मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन का संबंध है, अनुच्छेद 33 के तहत संसद उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के रिट क्षेत्राधिकार से कोर्ट-मार्शल (सैन्य कानून के तहत स्थापित न्यायाधिकरण) को बाहर करने के लिए एक कानून बना सकती है।