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Question

Q. With reference to the organisation of the Judicial System in India by the British in the 18th century, consider the following statements:

Which of the statements given above is/are correct?

Q. 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा भारत में स्थापित न्यायिक व्यवस्था के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?


A

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B

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Solution

The correct option is A
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Explanation: By the mid-18th century, there was the emergence of the British Judicial System in India.

Statement 1 is correct: The British Judicial system in India was based on the principles of the Rule of Law and Equality before law. No one was above the law and all the citizens irrespective of their caste, class and other status were equal before the law.

Statement 2 is incorrect:.The principle of habeas corpus provided that no person could be arrested or kept in prison without a written order from the local executive or the judicial authority, even the Government servants, if the acts done in their official capacity could be sued in the court of Law.

Statement 3 is incorrect: Lord Cornwallis (1786-1793) separated the executive and judicial duties at district level. Sadar Diwani Adalat was the highest appellate body for the civil cases in India followed by the four Provincial Courts of Civil Appeal at Calcutta, Dacca, Murshidabad and Patna.Then at local levels District Courts, Registrars’ Courts and a number of Subordinate Courts were making the hierarchy. A large number of magistrates were active to deal with criminal cases, above them were four Courts of Circuit at Calcutta, Dacca, Murshidabad and Patna which were governed by Sadar Nizamat Adalat at Calcutta. In 1831 William Bentinck abolished the four Provincial civil and criminal courts and redistributed their work to Commissioners and District Collectors.


व्याख्या: 18वीं शताब्दी के मध्य तक भारत में ब्रिटिश न्यायिक व्यवस्था का उदय हो चुका था।

कथन 1 सही है: भारत में ब्रिटिश न्यायिक प्रणाली, विधि का शासन और विधि के समक्ष समानता के सिद्धांतों पर आधारित थी। कोई भी कानून से ऊपर नहीं था तथा सभी नागरिक अपनी जाति, वर्ग और अन्य स्थिति से परे विधि के समक्ष समान थे।

कथन 2 गलत है: बंदी प्रत्यक्षीकरण का सिद्धांत यह प्रदान करता है कि किसी भी व्यक्ति को स्थानीय कार्यपालिका या न्यायिक प्राधिकरण, के लिखित आदेश के बिना न तो गिरफ्तार किया जा सकता है, न ही जेल में रखा जा सकता है, यहां तक कि सरकारी कर्मचारियों पर भी, यदि वे अपने आधिकारिक कर्तव्यों के अंतर्गत ऐसा कोई काम करते हैं तो विधि न्यायालय में मुकदमा चलाया जा सकता है।

कथन 3 गलत है: लॉर्ड कार्नवालिस (1786-1793) ने जिला स्तर पर कार्यकारी और न्यायिक कर्तव्यों को अलग कर दिया। भारत में सदर दीवानी न्यायालय दीवानी मामलों हेतु सर्वोच्च अपीलीय निकाय थे, जिसके बाद कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद और पटना में सिविल अपील के चार प्रांतीय न्यायालय थे। फिर स्थानीय स्तर पर जिला न्यायालय, रजिस्ट्रार न्यायालय और कई अधीनस्थ न्यायालयों का पदानुक्रम था। आपराधिक मामलों से निपटने के लिए बड़ी संख्या में मजिस्ट्रेट सक्रिय थे, उनके ऊपर कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद और पटना में सर्किट के चार न्यायालय थे जो कलकत्ता स्थित सदर निजामत अदालत के अधीन थे। 1831 में विलियम बेंटिक ने चार प्रांतीय दीवानी और फौजदारी अदालतों को समाप्त कर दिया तथा अपने काम को आयुक्तों और जिला कलेक्टरों को पुनर्वितरित कर दिया।


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Q.

Q. With reference to the organisation of the Judicial System in India by British in 18th century, consider the following statements:

Which of the statements given above is/are correct?

Q. 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा भारत में न्यायिक प्रणाली के व्यवस्थापन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः

  1. भारत में ब्रिटिश न्यायिक प्रणाली विधि के शासन और विधि के समक्ष समानता के सिद्धांतों पर आधारित थी।
  2. किसी भी ब्रिटिश सरकारी सेवक पर उनके आधिकारिक क्षमता में किए गए कृत्यों के लिए न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था।
  3. सदर दीवानी न्यायालय भारत में आपराधिक मामलों के लिए सर्वोच्च अपीलीय निकाय थी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?



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    केवल 1 और 2

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    केवल 3

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    केवल 2 और 3
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