Q. With reference to the Preamble of the Constitution of India, consider the following statements:
Which of the statements given above is/are correct?
Q. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Explanation:
The Preamble of the Indian Constitution serves as a brief introductory statement of the Constitution that sets out the guiding purpose, principles and philosophy of the Indian Constitution. By 42nd Constitutional Amendment, 1976, it was amended which determined to constitute India into a Sovereign, Socialist, Secular and Democratic Republic. It secures justice, liberty, equality to all citizens of India and promotes fraternity amongst the people. The idea of the following things can be given by the Preamble which are:
Statement 1 is correct: In the Berubari Union case (1960), the Supreme Court said that the Preamble shows the general purposes behind several provisions in the Constitution and is, thus, a key to the minds of the makers of the Constitution. Further, where the terms used in any Article are ambiguous or capable of more than one meaning, some assistance at interpretation may be taken from the objectives enshrined in the Preamble. Despite this recognition of the significance of the Preamble, the Supreme Court specifically opined that the Preamble is not a part of the Constitution.
Statement 2 is correct: The current opinion held by the Supreme Court is that the Preamble is a part of the Constitution and is in consonance with the opinion of the founding fathers of the Constitution. However, two things should be noted: 1. The Preamble is neither a source of power to legislature nor a prohibition upon the powers of legislature. 2. It is non-justiciable, that is, its provisions are not enforceable in courts of law.
Statement 3 is incorrect: The Preamble has been amended only once so far, in 1976, by the 42nd Constitutional Amendment Act, which has added three new words–Socialist, Secular and Integrity–to the Preamble.
व्याख्या:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान का एक संक्षिप्त परिचय है जिसमें भारतीय संविधान के मार्गदर्शक प्रयोजन, सिद्धांत और दर्शन को निर्धारित करती है। 42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा, इसमें संशोधन किया गया, जिसके माध्यम से भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में निर्धारित किया गया । यह भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करता है एवं लोगों के बीच बंधुत्व को बढ़ावा देता है। प्रस्तावना के चार मूल तत्त्व हैं:
कथन 1 सही है: बेरुबाड़ी संघ मामले (1960) में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान में निहित सामान्य प्रयोजनों को दर्शाती है और इसलिए, संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क के लिए एक कुंजी है। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद में प्रयुक्त शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, इसकी व्याख्या हेतु कुछ सहायता प्रस्तावना में निहित उद्देश्यों से ली जा सकती है। प्रस्तावना को महत्त्व देने के बावजूद, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है।
कथन 2 सही है: सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान मत कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है यह संविधान के संस्थापकों के मत से साम्यता रखता है। हालाँकि, दो तथ्य उल्लेखनीय हैं: 1. प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है और न ही उसकी शक्तियों पर रोक लगाने वाला। 2. यह गैर-न्यायिक है, अर्थात, इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
कथन 3 गलत है: अब तक प्रस्तावना को केवल एक बार 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा संशोधित किया गया है, जिसके माध्यम से प्रस्तावना में तीन नए शब्द-समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और सत्यनिष्ठा को जोड़ा गया।