Q. With reference to the religious history of India, consider the following statements:
Which of the statements given above is/are correct?
Q. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Explanation: During the later Vedic period, two important religions, Buddhism and Jainism were born. Buddhism is based on the teachings of Gautama Buddha, while Jainism is based on the teachings of Mahavira. Buddhism had two major school of thoughts in Buddhism are – Mahayana Buddhism (the Great Vehicle) and Hinayana (the Lesser Vehicle) and Jainism are divided into two major sects; the Digambara (meaning sky clad) sect and the Svetambara (meaning white-clad) sect.
Statement 1 is incorrect: The doctrine of ‘Syadvada’ belongs to Jainism. It emphasizes the relativity of all knowledge. According to this doctrine, all judgements are conditional, holding good only in certain conditions, circumstances or senses.
Statement 2 is correct: The principle of ‘Anekantavada’ is the core of Jain doctrine. It is the doctrine of ‘non-onesidedness’ or ‘manifoldness’ or ‘non-absolutism’. It states that the ultimate truth and reality are complex and have multiple aspects. It is one of the basic principles of Jainism that encourages acceptance of relativism and pluralism.
Statement 3 is correct: ‘Nibbana’ / ‘Nirvana’ is the ultimate goal of Budhha’s teachings. Literally, ‘Nibbana’ means non-attachment. It does not mean physical death; rather, it signifies the dying out or extinction of desire, attachment, greed, ignorance, hatred and even the sense of ego.
व्याख्या: उत्तर वैदिक काल के दौरान दो महत्वपूर्ण धर्मों बौद्ध और जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर जबकि जैन धर्म महावीर की शिक्षाओं पर आधारित है। बौद्ध धर्म के दो प्रमुख मत - महायान बौद्ध धर्म (महान वाहन) और हीनयान (छोटा वाहन) हैं, वहीं जैन धर्म दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित हैं; दिगंबर (अर्थात् आकाश पहने) संप्रदाय और श्वेतांबर (अर्थात सफेद पहनावा) संप्रदाय।
कथन 1 गलत है: 'स्यादवाद' का सिद्धांत जैन धर्म से संबंधित है। यह हर तरह के ज्ञान की सापेक्षता पर जोर देता है। इस सिद्धांत के अनुसार, सभी निर्णय सशर्त होते हैं जो केवल कुछ शर्तों, परिस्थितियों या इंद्रियों या हालत में ही सही होते हैं।
कथन 2 सही है: 'अनेकांतवाद' का सिद्धांत जैन सिद्धांत का मूल है। यह 'बहुपक्षीय' या 'अनेकता' या 'गैर-निरपेक्षता' का सिद्धांत है। इसमें कहा गया है कि परम सत्य और वास्तविकता जटिल है और इसके कई पहलू हैं। यह जैन धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है जो सापेक्षवाद और बहुलवाद को प्रोत्साहित करता है।
कथन 3 सही है: 'निर्वाण/निब्बाना' बुद्ध की शिक्षाओं का अंतिम लक्ष्य है। वस्तुतः, 'निब्बाना' का अर्थ अनासक्ति है । इसका अर्थ शारीरिक मृत्यु नहीं है; बल्कि, यह इच्छा, मोह, लोभ, अज्ञान, घृणा और यहां तक कि अहंकार की भावना को ख़त्म करने या लोप होने का प्रतीक है।