Q83. With reference to the Montague- Chelmsford report on Indian constitutional reforms, 1918, consider the following statements:
1. The Indians were consulted by the Britishers before finalizing the report.
2. The final report was rejected by the moderate leaders.
Which of the above statement(s) is/are correct?
Q83. भारतीय संवैधानिक सुधारों के लिए मोंटेगयू-चेम्सफोर्ड की रिपोर्ट (1918) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले अंग्रेजों ने भारतीयों से परामर्श लिया था।
2. अंतिम रिपोर्ट को नरमपंथी नेताओं ने खारिज कर दिया था।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से सत्य है/हैं?
(a) केवल 1 (b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों (d) इनमें से कोई नहीं
Only 1
केवल 1
Ans:83)(a)
Explanation: In November, 1917, Lord Montague visited India and conferred with the Lord Chelmsford, the officials of the central and provincial governments and Indian leaders. On the basis of these deliberations the Report on Indian Constitutional Reforms which came to be known as Montague Chelmsford Report was published in July, 1918. It was on the basis of the report that the Government of India Act, 1919 was drafted and introduced in the British Parliament in December, 1919.
In August 1918 a special session of the congress was called at Bombay to consider this report. In this session a resolution was passed by the Congress condemning the scheme as ‘inadequate, unsatisfactory and disappointing.’ The Moderates abstained from attending the Congress session at Bombay, they were convinced that the proposals marked a substantial advance upon then existing conditions and that there should be sincere appreciation of the good faith shown therein.
उत्तर:83)(a)
व्याख्या: नवंबर, 1917 में, लॉर्ड मोंटेगयू ने भारत का दौरा किया और लॉर्ड चेम्सफोर्ड, केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के अधिकारियों और भारतीय नेताओं के द्वारा सम्मानित किये गए। इन विचार-विमर्श के आधार पर भारतीय संवैधानिक सुधारों पर रिपोर्ट जिसे मोंटेगयू -चेम्सफोर्ड रिपोर्ट के रूप में जाना जाता है , जुलाई 1918 में प्रकाशित की गयी । इसी रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार अधिनियम, 1919 का प्रारूप तैयार किया गया और ब्रिटिश संसद में दिसंबर 1919 पेश किया गया था।
अगस्त 1918 में इस रिपोर्ट पर विचार करने के लिए कांग्रेस के एक विशेष सत्र को बम्बई में बुलाया गया था। इस सत्र में कांग्रेस ने इस योजना को 'अपर्याप्त, असंतोषजनक और निराशाजनक' के रूप में निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। नरमपंथियों को बम्बई में कांग्रेस सत्र में भाग लेने से दूर रखा गया, उन्हें आश्वस्त किया गया कि प्रस्तावों ने मौजूदा स्थितियों पर पर्याप्त प्रगति की है और वहां उसमें दिखाए गए अच्छे विश्वास की ईमानदारी से प्रशंसा की जाएगी।