रोहित ने कहा था, "कितनी पुस्तकें बेकार जाती होंगी। एक बार पढ़ी और फिर बेकार हो गई।" क्या सचमुच में ऐसा होता है?
हम यह नहीं मानते हैं। कई बार ऐसा ही होता है कि कुछ पुस्तकें केवल एक बार पढ़कर बेकार हो जाती हैं। उन्हें रद्दी में देना पड़ता है। परन्तु उसमें कुछ ही किताबों के साथ ऐसा होता है। अधिकतर किताबें एक व्यक्ति के बाद अलग-अलग व्यक्तियों के हाथों जाती हैं। वे बेकार नहीं होती हैं। उनके कारण कई लोगों को महत्वपूर्ण जानकारी व ज्ञान प्राप्त होता है। यदि ऐसा न होता, तो आज पुस्तकालय नहीं बने होते।