शीतल वाणी में आग- के होने का क्या अभिप्राय है?
इस पंक्ति का अभिप्राय है कि यदि उसकी वाणी शीतल है, तो यह मान लेना कि उसमें विनय, विनम्रता के भाव ही होंगे गलत है। उसकी वाणी में शीतलता के गुण के अतिरिक्त ओजस्वी गुण भी विद्यमान है। उसकी वाणी शीतल रहती है क्योंकि वह धीरज नहीं खोता। वह संसार का विद्रोह करता है लेकिन अपनी वाणी को शीतल बनाए रखना चाहता है। वह अपने हृदय की आग को वाणी में समाहित तो करता है लेकिन शीतलता के गुण को बनाए रखते हुए। भाव यह है कि वह अपने दिल में विद्यमान दुख को वाणी के माध्यम से व्यक्त करता है लेकिन यह ध्यान रखता है कि वाणी में कोमलता बनी रहे। इस तरह से वह अपने मन की भड़ास भी निकाल देता है और स्वयं का आपा नहीं खोता।
यह पंक्ति विरोधाभास को दर्शाती है क्योंकि शीतलता के साथ आग का मेल नहीं बैठता। जहाँ आग है, वहाँ शीतलता नहीं मिल सकती। आग का गुण है तपन देना। अतः तपन में शीतलता यानी ठंडापन नहीं मिल सकता। लेकिन यह पंक्ति कवि के विद्रोह को व्यक्त करने के लिए बड़ी उत्तम जान पड़ती है।