(क) 'धीरे-धीरे' होना में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। इसके माध्यम से कवि ने बनारस में हो रहे बदलावों की गति को व्यक्त किया है। धीरेपन को बनारस की विशेषता बताया गया है। लाक्षणिकता का भाव भाषा में समाहित है।
(ख) इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बनारस की विचित्रता को दर्शाया है। उसे यहाँ जब कुछ पूर्ण नहीं दिखाई देता। वह आधा बोलकर इस अधूरेपन को व्यक्त करता है। प्रतीकात्कता का भाव विद्यमान है तथा अनुप्रास अलंकार की छटा भी बिखरी हुई है। आधा शब्द पंक्तियों में चमत्कार उत्पन्न करता है।
(ग) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बनारस की आध्यात्मिकता का परिचय देता है। वह बस आध्यात्मिकता के रंग में रंगा हुआ है और दूसरे पक्ष से बिल्कुल अनजान है। अनुप्रास की छटा दिखाई देती है। एक टाँग पर खड़ा होना मुहावरा है। प्रस्तुत अंश में इसका प्रभावी प्रयोग है। प्रतीकात्मकता तथा लाक्षणिकता का समावेश है।