क | ख |
किं कुर्यात् कातरो युद्धे | अत्रैवोक्तं न बुध्यते। |
विद्वद्भि: का सदा वन्घा | तक्रं शक्रस्य दुर्लभम्। |
कं सञ्जघान कृष्णः | मृगात् सिंहः पलायते |
कथं विष्णुपदं प्रोक्तं | काशीतलवाहिनी गङ्गा। |
किं कुर्यात् कातरो युद्धे मृगात् सिंहः पलायते।
विद्वद्भिः का सदा वन्धा अत्रैवोक्तं न बुध्यते।
कं सञ्जानः कृष्णः का शीतलवाहिनी गङ्गा।
कथं विष्णुपदं प्रोक्तं तक्रं शक्रस्य दुर्लभम्।