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Question

संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै ...... चाहत चलन ये संदेशो लै सुजान को।
(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्है पैज परी ....... कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।
(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, .................बिललात महा दुःख दोष भरे।
(घ) ऐसो हियो हित पत्र पवित्र ..... टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।

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Solution

(क) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ अंतरा भाग-2 नामक पुस्तक में संकलित कवित्त से ली गई हैं। इसके रचयिता रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि घनानंद है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेमिका से वियोग के कारण अपनी दुःखद स्थिति का वर्णन करता है। वह प्रेमिका से मिलने की आस लगाए बैठा है परन्तु प्रेमिका उसकी ओर से विमुख बनी बैठी है।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैंने तुम्हारे द्वारा कही गई झूठी बातों पर विश्वास किया था लेकिन उन पर विश्वास करके आज मैं उदास हूँ। ये बातें मुझे उबाऊ लगती हैं। अब मेरे संताप हृदय को आनंद देने वाले बादल भी घिरते नहीं दिखाई दे रहे हैं। वरना यही मेरे हृदय को कुछ सुख दे पाते। मेरी स्थिति अब ऐसी हो गई है कि मेरे प्राण कंठ तक पहुँच गए हैं अर्थात मैं मरने वाला हूँ। मेरे प्राण इसलिए अटके हैं कि तुम्हारा संदेश आए और मैं उसे लेकर ही मरूँ। भाव यह है कि कवि अपनी प्रेमिका के संदेश की राह देख रहा है। उसके प्राण बस उसके संदेशा पाने के लिए अटके पड़े हैं।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ अंतरा भाग-2 नामक पुस्तक में संकलित कवित्त से ली गई हैं। इसके रचयिता रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि घनानंद है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेमिका के वियोग के कारण अपनी दुःखद स्थिति का वर्णन करता है। वह प्रेमिका के निष्ठुर व्यवहार से दुखी है और कहता है कि तुम इस प्रकार का व्यवहार मेरी ओर से कब तक रखोगी। मैं तुम्हें इसे छोड़ने पर विवश कर दूँगा।
व्याख्या- घनानंद कहते हैं कि हे सुजान! मेरी तुमसे इस विषय बहस हो ही गई है। तुम्हें ही अपनी जिद्द छोड़कर बोलना ही पड़ेगा। सुजान तुम्हें यह जानना ही होगा कि पहले कौन बोलता है। लगता है तुमने अपने कानों में रूई डाली हुई है। इस तरह तुम कब तक मेरी बात नहीं सुनने का बहाना बनाओगी। आखिर कभी तो ऐसा दिन आएगा, जब तुम्हारे कानों में मेरी पुकार पहुँचेगी। उस दिन तुम्हें मेरी बात सुननी ही पड़ेगी। भाव यह है कि सुजान की अनदेखी पर कवि चित्कार उठते हैं और उसके सम्मुख यह कहने पर विवश हो उठते हैं कि एक दिन सुजान स्वयं कवि के प्रेम निवेदन को स्वीकार करेगी।

(ग) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ अंतरा भाग-2 नामक पुस्तक में संकलित कवित्त से ली गई हैं। इसके रचयिता रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि घनानंद है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि संयोग तथा वियोग अवस्थाओं का आपस में तुलनात्मक अध्ययन कर रहा है।
व्याख्या- घनानंद कहते हैं कि जब तक मैं तुम्हारे साथ था, तब तक तुम्हारी छवि देखकर मैं जीवित था। लेकिन जबसे तुमसे अलग हुआ हुँ बहुत व्याकुल हूँ। अपने मिलनकाल के समय की स्थिति का सोचते ही मेरे नयन जलने लगते हैं। अर्थात अपने पुराने समय का सोचकर मुझे बहुत कष्ट होता है। उस समय मेरे हृदय में यही सोचकर संतोष हुआ करता था कि तुम मेरे सामने हो। तुमसे अलग होने के कारण वियोग में तड़पना पड़ रहा है और जिससे मुझे बहुत दुख सहना पड़ रहा है। यह अवस्था मेरे लिए दोष से भरी हुई है। भाव यह है कि जब सुजान कवि के पास थी, तो कवि उसके साथ को पाकर ही संतुष्ट हो जाता था। परन्तु आज उससे अलग हो जाने के कारण उसे महान दुख हो रहा है, जो उसके बहुत कष्टप्रद स्थिति है।

(घ) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ अंतरा भाग-2 नामक पुस्तक में संकलित कवित्त से ली गई हैं। इसके रचयिता रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि घनानंद है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेयसी के निष्ठुर हृदय का वर्णन कर रहा है। वह कवि के प्रेम को जानते हुए भी निष्ठुर बन गई है और उसे छोड़कर चली गई है।
व्याख्या- घनानंद जी कहते हैं कि मेरे पवित्र हृदय रूपी प्रेमपत्र में मैंने कभी किसी और के बारे में उल्लेख नहीं किया। ऐसी कथा आज से पहले कभी किसी और ने लिखी नहीं थी। मैं इस बात से अनजान हूँ कि आखिर क्यों सुजान ने मेरे प्रेम पत्र को खोलकर देखा भी नहीं और उस पत्र के टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिए। अर्थात उसने मेरे हृदय में व्याप्त प्रेम भावनाओं को समझा भी नहीं और मुझे अकेला छोड़ दिया।

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