संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं- इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
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Solution
बिलकुल सत्य बात है कि संगीत का क्षेत्र विस्तीर्ण क्षेत्र है। भारतीय परंपरा में तो यह जैसे रचा-बसा है। इसकी छाप भारतीय फ़िल्मों में देखी जा सकती है। वहाँ की कोई फ़िल्म बिना गाने के पूरी नहीं होती है। विदेशी फ़िल्मों की तरह प्रयास किए गए कि हिन्दी फ़िल्म बिना गानों की बनाए जाए पर ऐसा हो नहीं पाया। आज भी हमारी फ़िल्मों में शास्त्रीय संगीत की छाप मिलती है। यह परंपरा आज की नहीं है बल्कि वर्षों पुरानी है। वे इसमें विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते हैं। चित्रपट शास्त्रीय संगीत की गंभीरता के स्थान पर लय तथा चपलता को स्थान देते हैं। शास्त्रीय संगीत में ताल का परिष्कृत तथा शुद्ध रूप देखने को मिलता है। चित्रपट में ऐसा नहीं होता, वहाँ आधे तालों का ही प्रयोग किया जाता है। इस कारण इसे आम व्यक्ति भी थोड़े प्रयास से गा सकता है। आज फ़िल्मी संगीत में पॉप, शास्त्रीय संगीत, लोकगीतों का मिश्रण देखने को मिलता है। ये प्रयोग तेज़ी से हो रहे हैं और लोगों द्वारा सराहे भी जा रहे हैं।