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Question

स्पीति में बारिश एक यात्रा-वृत्तांत है। इसमें यात्रा के दौरान किए गए अनुभवों, यात्रा-स्थल से जुड़ी विभिन्न जानकारियों का बारीकी से वर्णन किया गया है। आप भी अपनी किसी यात्रा का वर्णन लगभग 200 शब्दों में कीजिए।

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Solution

कई बार मैंने मसूरी के बारे में पढ़ा था। मेरा भी मन हुआ कि मैं यहाँ कि यात्रा करूँ परन्तु समय की कमी और साथ न होने के कारण नहीं जा पाया। एक बार परिवार के साथ मसूरी जाने का कार्यक्रम बना। आई.एस.बी.टी. बस अड्डे से रात 10:30 बजे हम दिल्ली से मसूरी जाने वाली बस में सवार हुए। ग्यारह बजे ड्राइवर ने बस चला दी और हमारी बस आई.एस.बी.टी. से निकलती हुई सरपट मार्ग पर दौड़ने लगी। मार्ग पर चारों तरफ अन्धकार छाया हुआ था। परन्तु मार्ग पर लगी अनगिनत स्ट्रीट-लाईट मानो उस अंधकार को दूर भगा रहीं थीं। प्रात: पाँच बजे हमारी बस मसूरी के 'लाइब्रेरी' नामक स्थान पर पहुँच गई। हम वहाँ के मसूरी होटल में ठहरे। हम सब शौच व स्नान आदि से निवृत्त होकर 9:00 बजे माल रोड़ में घूमने निकले। बाज़ार की शोभा देखते ही बनती थी। चारों तरफ लोगों की चहल-पहल थी। उसके ऊपर से मसूरी का मौसम बहुत ही अच्छा था। पूरे दिन बाज़ार में घूमते हुए हमने मछली घर में रंग-बिरंगी मछलियाँ देखी। हम 'केमल रॉक' नामक स्थान में भी गए। वह स्थान बिल्कुल शान्त व सुन्दर था। दूर-दूर तक ऊँचे-ऊँचे पर्वत, सुन्दर और गहरी घाटियाँ दिखाई दे रही थीं। ठंडी हवाएँ कानों व हाथों को जमा रहीं थीं। अपनी ही आवाज़ गूंजती हुई प्रतीत हो रही थी। खड़े वृक्ष मानो हमारे साथ उस शांति का आनंद ले रहे थे। जिधर दृष्टि डालो, उधर ही हरियाली आँखों को भा रही थी। मन पर्वतीय प्रदेश की सुंदरता और शांति में कहीं खो गया था।
अगले दिन हम 'कैम्टीफॉल' नामक स्थान को देखने के लिए निकल पड़े। हमने एक जीप किराए पर ली। जीप में जाना बड़ा सुखद अनुभव था। कैम्पटीफॉल पहुँचने के लिए हम सब बहुत उत्साहित थे। हमारा हृदय पर्वतीय सुन्दरता को देखकर आनंदित हो रहा था। वह स्थान लोगों से भरा हुआ था। पहाड़ की एक चोटी से काफी मोटी जलधारा निकल रही थी। नीचे पानी का एक छोटा-सा तालाब था। बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी उस जल में अठखेलियाँ कर रहे थे। हमने भी उस जल में खूब मस्ती की। वहाँ तीन घण्टे बिताने के पश्चात समीप ही स्थित कम्पनी गार्डन नामक स्थान में भी गए।
उस गार्डन में सफेद, गुलाबी, नीले जामुनी विभिन्न तरह के रंगों के फूल खिले हुए थे। वहाँ की शोभा देखते ही बनती थी। फूलों से पौधे ऐसे लदे हुए थे मानो वह गुलदस्ते में सजा कर रखे गए हों। दो घंटे बिताने के पश्चात हम होटल में वापस आ गए। मसूरी में शाम के समय मौसम बहुत सुहावना हो रहा था। पर्वतों से बादल ऐसे निकल रहे थे मानो रुई के फोहे निकल रहे हों। धीरे-धीरे चारों ओर कोहरे का साम्राज्य छाने लगा और देखते ही देखते वर्षा होने लगी। वर्षा में मसूरी के बाज़ार की शोभा देखने योग्य थी। मसूरी का वास्तविक जीवन बाज़ार में ही दिखाई दे रहा था। वहाँ के स्थानीय निवासी बड़े मददगार व शान्त स्वभाव के थे। वर्षा से धुले आकाश व धरती की शोभा मन को हरने वाली थी। वह शाम आज भी मुझे याद है। चारों ओर ऊँचे पेड़ों से आच्छादित और हरियाली से युक्त पर्वत मन को आनंदित कर रहे थे। रात के समय मसूरी की सुन्दरता देखने योग्य थी। पूरा बाज़ार रोशनी से चमक रहा था ऐसा लगता था मानो तारे आकाश से उतरकर मसूरी की पहाड़ियों पर ही निवास करने लगे हों। उस सर्दीली रात में आकाश में चमकते तारे व ज़मीन पर बिजली से बने तारे वातावरण में चार चाँद लगा रहे थे। होटल के कमरे से देहरादून शहर दिखाई दे रहा था। रोशनी से दमकता देहरादून स्वर्ग के समान और मसूरी स्वर्ग का रास्ता प्रतीत हो रहा था।

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